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वो इन्द्रधनुष
कौन कहता है इन्द्रधनुष
केवल बारिश के बाद निकलता है
जब बूंदों से भरे बादलों के बीच से
सूरज की किरण गुज़रती है
मै तो रोज़ देखती हूँ इन्द्रधनुष
मेरे कालेज की गेलरी में
फैकल्टी रूम के सामने
रोज़ उसके मोटे शीशे से गुज़रती धूप
बना जाती है इन्द्रधनुष
सीमेंटेड चिकने से फर्श पर
मै आज भी खेलती हूँ उससे बच्चों की तरह
कभी मुट्ठियों में बंद करके की कोशिश
तो कभी हथेली पर रख लेती हूँ वो इन्द्रधनुष
पर हाँ, पैर कभी नहीं पड़ने देती उस पर
क्योंकि चाहे कांच का दरवाजा हो
या बूंदों से भरा बादल
सूरज की किरण
अपनी कलाकारी में
कोई कसर नहीं छोडती