Sunday, January 8, 2012

मेरे हर एक दर्द को तुम अपना लेते हो



मेरे हर एक दर्द को तुम अपना लेते हो
मै जब रोती हूँ मेरे संग गा लेते हो
स्वाद भरा हो या हो बिलकुल बेढंगा सा
प्यार से जो भी देती हूँ वो खा लेते हो
कितनी भी बातें कर लूँ मै उलटी सीधी
सुन लेते हो सबकुछ, और समझा देते हो
गुस्सा किसको कहते हैं ये तुम क्या जानो
मेरे गुस्से को हंसकर सुलझा लेते हो
काम कोई रह जाये गर कुछ कही अधूरा
बिना मदद के खुद ही सब निपटा लेते हो
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बहुत देर से देख रही थी मै ये सपना
तुम आते हो चाय के लिए जगा देते हो

ये सब सिर्फ सपने में संभव है...:)

14 comments:

  1. काश यह सपना सच हो ...
    सुन्दर एहसास

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  2. काश! यह सच हो जाये अच्छी रचना बधाई

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  3. Aur agar vo chay le ki haath mein jagate to ... Yahi lagta ki kitna Accha sapna hai ... Achhaa likha hai Bahut ....

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  4. बहुत बहुत बढ़िया....

    वाकई कमाल लिख डाला आपने :-)
    हर स्त्री को मज़ा आएगा..

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  5. नाजुक से ये ख्‍याल ...बहुत ही भावमय ।

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  6. :)
    Sapna hi sambhav sahi..
    par hai bahut khoobsoorat..

    Kabhi samay mile to mere blog par bhi padhaariyega..
    palchhin-aditya.blogspot.com

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  7. वाह! बहुत अच्छा लगा आपको पढकर.
    सपने भी तो हकीकत बनते हैं.
    सच्ची चाह से क्या नही हो सकता,रंजन जी.

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  8. सॉरी रंजन जी के स्थान पर रंजना जी पढियेगा,प्लीज.

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  9. बहुत देर से देख रही थी मै ये सपना
    तुम आते हो चाय के लिए जगा देते हो

    ये सब सिर्फ सपने में संभव है...:)kabhi to sach ho

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  10. This comment has been removed by a blog administrator.

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  11. kaash ye sundar sapna sach ho jaye.....

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