Tuesday, June 25, 2013

 रिसती दीवार 

सीलन से यूँ ही नहीं गिर जाती दीवारें 
बहुत दिनों तक खुद में ही
समेटती, सहेजती रहती है नमी को 
संभालती रहती हैं हर कमी को 
पर जब ये नमी उभर आती है 
बूँदें बन कर सीली हुई दीवारों पर 
फिसलती हैं लकीर बनकर किनारों पर 
तब हमदर्दी की धूप की गर्मी 
मीठे से लफ़्ज़ों की नरमी 
अगर सुखा ले गयी ये सीलन 
तो फिर जी उठता है सहने का जज्बा
वर्ना किसी दिन यूँ ही
घावों सी रिसती दीवार
दम तोड़कर ढह जाती है

- रंजना डीन

ख़ुशी हो साथ, या न हो
मगर गम ढून्ढ लेता है

मै कितना भी छुपुं
मेरी महक ये सूंघ लेता है

चला आता है चुपके से
रुला जाता है जी भर के

मेरे कंधे पे सर रखकर
ये घंटो ऊंघ लेता है

- रंजना डीन

Sunday, June 16, 2013

Happy Father's Day Dear Papa

पापा को याद करते हुए बचपन की एक याद शेयर कर रही हूँ आप सबसे...

बचपन में मैंने खेले खेल खिलौने ढेर
हाथी, बन्दर, भालू, मुर्गा, कछुआ और बटेर

पापा ने घुटनों पर अपने झुला बहुत झुलाया
कंधे पर बैठा कर मुझको सारा जहाँ घुमाया

थे पापा के पेट पर बहुत घनेरे बाल
जब भी देखू आता था जंगल का ख्याल

एक दिन पापा ऑफिस से थक कर जब घर आये
लेट गए वो बिस्तर पर थोड़ा सा सुस्ताये

बस क्या था मौका मिला करने को शैतानी
सैर करेंगे जंगल की आज जानवर ठानी

हाथी, बन्दर, भालू, कछुआ और पापा का पेट
सभी जानवर सजा दिए जरा किया न वेट

आख खुली तो पापा ने देखा और मुस्काए
बोले इतने जानवर जंगल से कब आये?

अब तो मैंने बना लिया इसे रोज़ का खेल
पापा मेरी कैदी थे मिल न पाती बेल

तंग आकर फिर पापा ने अपनी अकल लगायी
सजे जानवर पेट पर तो जोर से तोंद फुलाई

लुढ़क गए सब जानवर ऐसा लगा उछाल
पापा बोले जंगल में आया आज भूचाल

- रंजना डीन

Thursday, June 13, 2013


जिंदगी का पलंग

जिंदगी का पलंग
इतना है तंग
की लेते ही करवट
लुढ़क जाती हूँ

ठंडी ज़मीन
जब रास नहीं आती
तो खुद को समेट
कर सिमट जाती हूँ

देखती हूँ
पलंग के नीचे
तो कुछ खोयी हुई पुरानी चीज़ें
पड़ी पाती हूँ

मेरे जूड़े की स्टिक
कुछ रंग बिरंगी बिंदिया
कुछ टुडे मुड़े ख्वाब
बटोर लती हूँ

और फिर से
जिंदगी के पलंग पर लेट
कुछ गुनगुनाती हूँ
कुछ ख्वाब सजाती हूँ 

 - रंजना डीन

Friday, June 7, 2013














फिसल कर आसमां की गोद से 
जब भी गिरी हो तुम 
न जाने बांह मेरी खुद-ब -खुद 
क्यों फ़ैल जाती हैं 
ऐ नन्ही बूँद तू मुझको
मेरी बेटी सी लगती है 
ज़रा पलकें मै फेरूँ तो 
वो मुझसे रूठ जाती है 

- रंजना डीन