Monday, June 14, 2010

बूंदे


लटों में उलझी बूंदे
यूँ लगती है जैसे
काली रात ने
उलझा लिए हैं खुद में
ढेर सारे सितारे,
और वो गिर रहे हैं
टूट टूट कर.
कधों से फिसलती
इधर उधर गुज़रती
गुदगुदी लगाती ये बूंदे,
बताती है पलों का मोल.
दो पल ठहरती हैं
और बिखर जाती हैं,
पर ज़मीन पर
रंगत बिखेर जाती हैं.

Sunday, June 13, 2010

ममता का स्वाद



आग की लपटों के बीच
गुब्बारे की तरह फूलती रोटियां
और उस आंच की तपन से
लाल होता माँ का चेहरा
दोनों ही आग में तपकर निखरे हैं
दोनों ही चूमने लायक है
क्योंकि रोटियों में स्वाद है माँ के प्यार का
और माँ में स्वाद है उसकी ममता का

Tuesday, June 8, 2010

नर्म एहसास तुम्हारी हथेली का



नर्म एहसास तुम्हारी हथेली का
हिस्सा हो जैसे जादू भरी पहेली का
आज है मेरी नन्ही सी बेटी का
कल यही होगा मेरी सबसे प्यारी सहेली का

तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच


तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच
न जाने कितने ऐसे पल आये
जब भीड़ में होते हुए भी
दिखे सिर्फ तुम ही
सुना सिर्फ तुमको

तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच
हमें याद रहा की लंच टाइम हो गया
तुमने खाना खाया होगा या नहीं
खाना तुम्हे पसंद आया होगा या नहीं

तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच
मै दूर होते हुए भी तुम्हारे करीब थी
और दोपहर के खाने के बाद की जम्हाइयां बता रही थी की
तुम्हारी तकिये के आधे हिस्से पर
अभी भी मेरा ही हक है

तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच
वो सुबह की चाय साथ पीने के पल
तुम्हारा रसोईं घर में मेरे आस पास मंडराते रहना
पिछले दिन के ब्योरे का हिसाब किताब
और आज के दिन की जन्म कुंडली
यथावत चलती रही

तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच
ऑफिस के लिए तैयार होते वक़्त
मुझे मेकअप करते देख तुम्हारा जलन भी
कडवे शब्दों के पीछे छुपे
तुम्हारे अथाह प्यार को छुपा नहीं पाती