Friday, May 18, 2012


तेरी यादों के जंगल में
कभी सोये, कभी खोये

कभी खुल के हँसे हम
और कभी छुप छुप के हम रोये

कभी कागज़ की कश्ती पर
सफ़र कर आ गए वापस

कभी हंस कर उदासी के
सभी नमो निशान धोये 

Friday, May 4, 2012

वक़्त

चीनी में चाय की तरह
लम्हा लम्हा घुलता वक़्त
कंधे पर उठाये
न जाने कितनी यादों का बोझ
चलता रहता है लगातार
और छांटता बीनता रहता है
अच्छे बुरे लम्हों को
कभी करता है कुछ बोझ हल्का
तो कभी बटोर लेता है
कुछ और नर्म मीठी यादें अपने झोले में
और यूँ ही चलते फिरते एक दिन
गुज़र जाता है वक़्त
फिर पलट कर
वापस न आने के लिए