Friday, May 4, 2012

वक़्त

चीनी में चाय की तरह
लम्हा लम्हा घुलता वक़्त
कंधे पर उठाये
न जाने कितनी यादों का बोझ
चलता रहता है लगातार
और छांटता बीनता रहता है
अच्छे बुरे लम्हों को
कभी करता है कुछ बोझ हल्का
तो कभी बटोर लेता है
कुछ और नर्म मीठी यादें अपने झोले में
और यूँ ही चलते फिरते एक दिन
गुज़र जाता है वक़्त
फिर पलट कर
वापस न आने के लिए

9 comments:

  1. वक्त किसी के लिए रुकता नहीं है ... बार यादों की धूल छोड़ जाता है ....

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  2. चीनी में चाय की तरह घुलता ...या चाय में चीनी की तरह घुलता वक़्त ?

    सुंदर प्रस्तुति

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  3. मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......

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  4. भावपूर्ण रचना आभार .

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  5. वक्त कब वापस आया है
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  6. वाह ...बहुत बढिया।

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