वक़्त
चीनी में चाय की तरहलम्हा लम्हा घुलता वक़्त
कंधे पर उठाये
न जाने कितनी यादों का बोझ
चलता रहता है लगातार
और छांटता बीनता रहता है
अच्छे बुरे लम्हों को
कभी करता है कुछ बोझ हल्का
तो कभी बटोर लेता है
कुछ और नर्म मीठी यादें अपने झोले में
और यूँ ही चलते फिरते एक दिन
गुज़र जाता है वक़्त
फिर पलट कर
वापस न आने के लिए
sunder hai
ReplyDeleteवक्त किसी के लिए रुकता नहीं है ... बार यादों की धूल छोड़ जाता है ....
ReplyDeleteचीनी में चाय की तरह घुलता ...या चाय में चीनी की तरह घुलता वक़्त ?
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
truth of life
ReplyDeleteमन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना आभार .
ReplyDeleteवक्त कब वापस आया है
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुंदर..
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढिया।
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