Friday, October 22, 2010
Monday, October 18, 2010
ख़ुशी
मैंने देखे हैं कई बार
पानी के बुलबुलों पर
ठहरे हुए इन्द्रधनुष
पर वो रुकते नहीं होते
हल्की सी थिरकन के साथ
टहलते है उस नन्हे से बुलबुले में
बचपन से बहुत लुभाते हैं मुझे
घंटो निहारा है इन्हें
साबुन का झाग बना कर
बड़े से बड़ा बुलबुला बनाने की कोशिशें
और कोशिशों में कामयाब होने की ख़ुशी
सच है ख़ुशी का कोई मोल नहीं
कभी मुफ्त में खुशियों का ढेर
तो कभी नोटों के ढेर में भी
ख़ुशी नदारत
Monday, October 11, 2010
नन्हा सा घोसला
रोज़ जोडती हूँ तिनके
थक गयी हूँ बिनते बिनते
पर मेरा नन्हा सा घोसला
झेल रहा न जाने कितनी बला
कभी बारिश, कभी तूफ़ान,
कभी गर्मी का उफान
कभी सुलगाता है
कभी डुबो जाता है
कभी पानी पर उतराता है
कभी आहट से थरथराता है
फिर भी पंखो के नीचे समेटे हुए
घोसले और उसके परिंदों को
बचाने की कोशिशों में
काट रही हूँ ये धधकते, कड़कते दिन
क्योंकि जिंदगी के कुछ मायने नहीं
इन परिंदों और घोसले के बिन
थक गयी हूँ बिनते बिनते
पर मेरा नन्हा सा घोसला
झेल रहा न जाने कितनी बला
कभी बारिश, कभी तूफ़ान,
कभी गर्मी का उफान
कभी सुलगाता है
कभी डुबो जाता है
कभी पानी पर उतराता है
कभी आहट से थरथराता है
फिर भी पंखो के नीचे समेटे हुए
घोसले और उसके परिंदों को
बचाने की कोशिशों में
काट रही हूँ ये धधकते, कड़कते दिन
क्योंकि जिंदगी के कुछ मायने नहीं
इन परिंदों और घोसले के बिन
Saturday, October 9, 2010
ताकि मिठास जिंदा रहे...
रहने दो कुछ अधूरा सा ही सही,
सबकुछ हो पूरा ये ज़रूरी नहीं.
आधा चाँद, आधी याद,
आधा घूंघट, आधी रात
पूरे होते ये सब...
तो नहीं होती इनमे वो बात.
रिश्ते की आधी सी बची...
मिठास को चखो मत,
चखते चखते कभी कभी...
ख़त्म हो जाती है चीज़ें.
बस सोच कर कर लो मुंह मीठा
ताकि मिठास जिंदा रहे...
कभी भी ख़त्म न होने के लिए.
सबकुछ हो पूरा ये ज़रूरी नहीं.
आधा चाँद, आधी याद,
आधा घूंघट, आधी रात
पूरे होते ये सब...
तो नहीं होती इनमे वो बात.
रिश्ते की आधी सी बची...
मिठास को चखो मत,
चखते चखते कभी कभी...
ख़त्म हो जाती है चीज़ें.
बस सोच कर कर लो मुंह मीठा
ताकि मिठास जिंदा रहे...
कभी भी ख़त्म न होने के लिए.
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