Wednesday, February 24, 2010

बड़े दिनों से न जाने
कितना कुछ मन में छुपा हुआ था
था कोई तूफ़ान
न जाने कैसे अबतक रुका हुआ था


एक बहुत मज़बूत इमारत
धीरे धीरे दरक रही थी
आज मोम बन पिघल रही थी
मन में जो भी कसक रही थी


गहराई की सारी सीमा
भरते भरते आज भरी थी
मै जितनी मासूम थी दिल से
दुनिया उतनी सख्त कड़ी थी


सब कुछ सहा अकेले मैंने
दर्द भरे दिन - दुःख की रातें
फिर भी लोग चला करते हैं
कितनी साजिश, गहरी घातें


रो लेती हूँ सबसे छुप कर
लिख लेती हूँ कागज़ पर गम
पन्ने हो जाते हैं गीले
बोझ दर्द का थोडा सा कम

दुःख

मन चिटका और बह निकला दुःख
सात समुन्दर पार कहीं
आशाएं भी टूटी बिखरी
आँखे भी भरपूर बही
क्यों मन भारी, क्यों मैं हारी
प्रश्न न जाने कितने है
चहरे के पीछे चेहरे हैं
सब नकली है जितने हैं
बढती जाती मन की पीड़ा
गहरे होते जाते घाव
सच हर रोज अपाहिज होता
झूठ के लम्बे होते पाँव

Thursday, February 18, 2010

कुछ पल बैठो साथ हमारे

कुछ पल बैठो साथ हमारे...
कुछ बोलो मुह खोलो तो,
हर्फों को तो समझ लिया है...
जज्बे को भी तौलो तो.

दुनिया भर में घूम रहे हो...
फैला करके कितने राग,
कुछ पल को तो चैन से बैठो...
कुछ पल मेरे हो लो तो.

तीखे, कडुवे, खट्टे, खारे...
बहुत जायके दुनिया में,
आओ कह दो हौले से कुछ...
कुछ मीठा सा बोलो तो.

झूठी हंसी से थके हुए से...
दिखती है ये लब तेरे,
रख लो मेरी गोद में सर को...
हंस न पाओ रो लो तो.

Friday, February 12, 2010

धड़कने जब धडकनों से बोलती है

धड़कने जब धडकनों से बोलती है...
जाने कितने राज़ दिल के खोलती है,
थाम लेती हैं हथेली दूर से ही...
बाँहों में बाहें फसा कर डोलती हैं.
कितने भी कड़वे हो लम्हे जिंदगी के...
तल्खियों में चाशनी सी घोलती हैं,
बेपनाह चाहतों की बारिशों को...
जब बहाती है कभी न तोलती है.