उसकी छांव बड़ी अपनी थी
स्नेहिल माँ की गोद के जैसी.
कितनी कवितायेँ जन्मी थी
जब जब उसकी छांव में बैठी.
नयी कोपलें जब भी टूटी
बड़े प्यार से पाली मैंने
सहलाकर , दुलराकर उनको
पन्नो बीच सजा ली मैंने
जब भी हवा चूमती उसको
शरमा कर झुक जाता आगे
जब भी खेली छुआ छुआई
उसके आगे पीछे भागे
दादी की झुर्री जैसी थी
उसकी छाल खुरदुरेपन में
सर पर छाँव किये रहता था
माँ जैसे ही अपनेपन से
काट दिए एक दिन आरी ने
स्नेह भरे वो सारे बंधन
आँगन में अब नहीं कोपलें
धूळ भरे चलते है अंधड़
हवा ढूँढती फिरती अब भी
कहा गया वो प्रियतम प्यारा
पेड़ कहा करते सब उसको
दोस्त था मेरा सबसे प्यारा
Friday, March 26, 2010
Monday, March 15, 2010
ममता की ममता
उसका नाम ममता
मासूम सी सूरत
एक सामाजिक संस्था से जुडी
वो करती है सामाजिक सुधार की बातें
खाती है अक्सर बहुत सी कसमें
करती है बहुत से वादे
तारे ज़मीन पर फिल्म देख कर वो बहुत रोई
बताया उसने वो पूरी रात न सोयी
लेकिन गरीब रिक्शे वालों से वो
एक दो रुपयों के लिए बहुत बहस करती है
और कहती है की वो गरीबों के हक के लिए बहुत लडती है
दोस्ती उन्ही से करती है
जिनके एकाउंट में पैसा है
इससे कोई फरक नहीं पड़ता
की वो इन्सान कैसा है
बच्चों की मासूमियत नहीं
उनका स्टेटस देख कर उन्हें गोद में उठाती है
जिसमे होती है रईसी की महक
बस उन्हें देख कर मुस्कुराती है
ठण्ड से थरथराती शाम में
जब एक मेहमान का बच्चा उसकी रजाई में सिमट आया
क्या मुझे अपने रूम में भी Privacy नहीं
उसे ये कह कर भगाया
आज वो बनी है माँ
सोच रही हूँ क्या उससे मिलने जाऊं
शायद उस ममता में...
अब सचमुच मुझे कही ममता दिख जाये
मासूम सी सूरत
एक सामाजिक संस्था से जुडी
वो करती है सामाजिक सुधार की बातें
खाती है अक्सर बहुत सी कसमें
करती है बहुत से वादे
तारे ज़मीन पर फिल्म देख कर वो बहुत रोई
बताया उसने वो पूरी रात न सोयी
लेकिन गरीब रिक्शे वालों से वो
एक दो रुपयों के लिए बहुत बहस करती है
और कहती है की वो गरीबों के हक के लिए बहुत लडती है
दोस्ती उन्ही से करती है
जिनके एकाउंट में पैसा है
इससे कोई फरक नहीं पड़ता
की वो इन्सान कैसा है
बच्चों की मासूमियत नहीं
उनका स्टेटस देख कर उन्हें गोद में उठाती है
जिसमे होती है रईसी की महक
बस उन्हें देख कर मुस्कुराती है
ठण्ड से थरथराती शाम में
जब एक मेहमान का बच्चा उसकी रजाई में सिमट आया
क्या मुझे अपने रूम में भी Privacy नहीं
उसे ये कह कर भगाया
आज वो बनी है माँ
सोच रही हूँ क्या उससे मिलने जाऊं
शायद उस ममता में...
अब सचमुच मुझे कही ममता दिख जाये
आसमान कुछ है उदास सा
आसमान कुछ है उदास सा
कुछ चुप चुप सी आज चांदनी
हर्फ़ बहुत धुंधले से दिखते
सुर खो बैठी आज रागिनी
कोई बैठा है गुमसुम सा
रूठा है कुछ है उदास सा
दूर बहुत है पहुँच से मेरी
फिर भी लगता बहुत पास सा
घुटनों पर अपना सर रखकर
बैठा होगा कही अकेला
बाहर होगी भरी दुपहरी
मन के अन्दर घोर अँधेरा
इस उलझन को सुलझाने में
मै खुद कही उलझ न जाऊ
सोच रही हूँ विदा बोल दूँ
या कैसे भी उसे मनाऊ?
कुछ चुप चुप सी आज चांदनी
हर्फ़ बहुत धुंधले से दिखते
सुर खो बैठी आज रागिनी
कोई बैठा है गुमसुम सा
रूठा है कुछ है उदास सा
दूर बहुत है पहुँच से मेरी
फिर भी लगता बहुत पास सा
घुटनों पर अपना सर रखकर
बैठा होगा कही अकेला
बाहर होगी भरी दुपहरी
मन के अन्दर घोर अँधेरा
इस उलझन को सुलझाने में
मै खुद कही उलझ न जाऊ
सोच रही हूँ विदा बोल दूँ
या कैसे भी उसे मनाऊ?
Saturday, March 13, 2010
आज है छुट्टी
आज है छुट्टी, मन करता है बिस्तर में ही पड़े रहो
हो रिमोट टीवी का साथ में, एक जगह पर गड़े रहो
कोई बढ़िया डिश खाने की, लाकर कोई सर्व करे
छुट्टी बीते यूँ सुकून से, उस छुट्टी पर गर्व करें
अलसाये से पड़े रहे, कभी इस करवट कभी उस करवट
आँखे बंद, खोल कर बैठे कल्पनाओं के सारे पट
बाकि सारे दिन हफ्ते के घडी की सुइयों साथ बंधे
हम बुनते जीवन का स्वेटर इसकी सिलाइयों में गुंधे
चलो उधेड़े कुछ फंदों को, धागों को लहराने दे
क्यों हर पल को नियम कायदे, खुशियों को फहराने दे
हो रिमोट टीवी का साथ में, एक जगह पर गड़े रहो
कोई बढ़िया डिश खाने की, लाकर कोई सर्व करे
छुट्टी बीते यूँ सुकून से, उस छुट्टी पर गर्व करें
अलसाये से पड़े रहे, कभी इस करवट कभी उस करवट
आँखे बंद, खोल कर बैठे कल्पनाओं के सारे पट
बाकि सारे दिन हफ्ते के घडी की सुइयों साथ बंधे
हम बुनते जीवन का स्वेटर इसकी सिलाइयों में गुंधे
चलो उधेड़े कुछ फंदों को, धागों को लहराने दे
क्यों हर पल को नियम कायदे, खुशियों को फहराने दे
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