Tuesday, August 7, 2012

मै सबके साथ होकर भी
अकेली हूँ न जाने क्यों?
कभी सुलझी
कभी उलझी पहेली हूँ न जाने क्यों?
बड़ी हिम्मत से मै हर रोज़
खुद को जोड़ लेती हूँ मगर
फिर भी मेरी आंखे पनीली हैं न जाने क्यों
हर एक रिश्ते को
सींचा है बड़ी शिद्दत मुहब्बत से
मगर खुद एक खाली सी हथेली हूँ न जाने क्यों
चुरा कर काश ले जाये
मेरा हर गम कोई आकर
कभी चट्टान थी
अब रेत की ढेरी हूँ, जाने क्यों?

Monday, August 6, 2012


















बारिशों में खिडकियों पर
थपथपाकर बह निकलती
फूल पौधे चूमती
लट पर ठहरती और फिसलती

धुल के कतरा कतरा 
कर देती सभी कुछ पानी पानी
शर्म के मारे ज़मी ने 
ओढ़ ली चुनर है धानी

मन बहकने सा लगे है
देख कर मेघा ये काले
कितना रोया है उमड़ कर
कितने इसने दर्द पाले

आज रो लेने दो इसको
दर्द बह जाने दो सारा
फिर नहीं गम होगा कोई
न कोई आंसू की धारा

हल्के बादल, हल्का सा मन
होंगी हल्की सी फुहारें
हौले हौले आ के लग जाएँगी
खुशियों की कतारें