मै सबके साथ होकर भी
अकेली हूँ न जाने क्यों?
कभी सुलझी
कभी उलझी पहेली हूँ न जाने क्यों?
बड़ी हिम्मत से मै हर रोज़
खुद को जोड़ लेती हूँ मगर
फिर भी मेरी आंखे पनीली हैं न जाने क्यों
हर एक रिश्ते को
सींचा है बड़ी शिद्दत मुहब्बत से
मगर खुद एक खाली सी हथेली हूँ न जाने क्यों
चुरा कर काश ले जाये
मेरा हर गम कोई आकर
कभी चट्टान थी
अब रेत की ढेरी हूँ, जाने क्यों?
अकेली हूँ न जाने क्यों?
कभी सुलझी
कभी उलझी पहेली हूँ न जाने क्यों?
बड़ी हिम्मत से मै हर रोज़
खुद को जोड़ लेती हूँ मगर
फिर भी मेरी आंखे पनीली हैं न जाने क्यों
हर एक रिश्ते को
सींचा है बड़ी शिद्दत मुहब्बत से
मगर खुद एक खाली सी हथेली हूँ न जाने क्यों
चुरा कर काश ले जाये
मेरा हर गम कोई आकर
कभी चट्टान थी
अब रेत की ढेरी हूँ, जाने क्यों?