फूल पौधे चूमती
लट पर ठहरती और फिसलती
धुल के कतरा कतरा
कर देती सभी कुछ पानी पानी
शर्म के मारे ज़मी ने
ओढ़ ली चुनर है धानी
मन बहकने सा लगे है
देख कर मेघा ये काले
कितना रोया है उमड़ कर
कितने इसने दर्द पाले
आज रो लेने दो इसको
दर्द बह जाने दो सारा
फिर नहीं गम होगा कोई
न कोई आंसू की धारा
हल्के बादल, हल्का सा मन
होंगी हल्की सी फुहारें
हौले हौले आ के लग जाएँगी
खुशियों की कतारें
सुन्दर......
ReplyDeleteमनभावन........
अनु
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteवाह!
कुँवर जी,
बारिश के बहाने दर्द बह सकता तो बात ही क्या ..
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