Saturday, February 19, 2011

आंगन फिर से हरा है





देख रही हूँ
एक सूखा पौधा फिर से हरा होता
उसकी मिट्टी में फिर से सुगंध है
फूट रही हैं कोपलें
और वो सख्त टहनियां
जो छूते ही चुभ जाती थी
अब नरम होती जा रहीं है
पहले मै बचा कर निकलती थी
इससे अपना आंचल
अब पोंछ देती हूँ अपने आंचल से
इसकी कोपलों पर जमी धूळ
मन है प्रसन्न क्योंकि
बहुत दिनों बाद
आंगन फिर से हरा है
खुशियों से भरा है

Tuesday, February 15, 2011

खोजते हो क्यों मुझे





खोजते हो क्यों मुझे
बनकर हवा मै बह गयी
हर्फ़ जो किस्मत में थे
तुमसे सभी वो कह गयी

चांदनी अब भी है रोशन
रात है अब भी जवां
फिर तुम्हे लगता है क्यों
की कुछ कमी सी रह गयी

रिश्तों की दीवार में
शायद नमी ज्यादा ही थी
हल्का सा झोंका जो आया
भरभरा कर ढह गयी

वक़्त कर देता है दिल को सख्त
अब आया यकीन
कितने सारे हादसे
मै मुस्कुरा कर सह गयी