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देख रही हूँ
एक सूखा पौधा फिर से हरा होता
उसकी मिट्टी में फिर से सुगंध है
फूट रही हैं कोपलें
और वो सख्त टहनियां
जो छूते ही चुभ जाती थी
अब नरम होती जा रहीं है
पहले मै बचा कर निकलती थी
इससे अपना आंचल
अब पोंछ देती हूँ अपने आंचल से
इसकी कोपलों पर जमी धूळ
मन है प्रसन्न क्योंकि
बहुत दिनों बाद
आंगन फिर से हरा है
खुशियों से भरा है