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Tuesday, July 24, 2012
ये बारिश हुई है
या आंसू है मेरे
जो बरसे हैं ऐसे
की थमते नहीं हैं
धुले जा रहे हैं
हर एक हर्फ़ मेरे
नमी है ग़मों की
ये जमते नहीं है
Saturday, July 7, 2012
दो जून की रोटी जो मयस्सर न हुई
तो खुदखुशी कर छोड़ दी दुनिया उसने
उसको क्या पता था कही पर बोरियों में
सड़ते पड़े हैं उसके उगाये गेंहू
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दो जून की रोटी जो मयस्सर न हुई तो खुदखुशी कर छो...
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ranjana
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ... रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ... नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है.... सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
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