हर दर्द पर निगाह रहती है आपकी। वाकई सोचो तो कितना अज़ीब लगता है कि हमारी व्यवस्था किसी किसान के श्रम के मूल्य को संरक्षित तक नहीं कर पा रही है .....कितना निर्लज्ज और कठोर उपहास है यह श्रम के मूल्य का...
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
मार्मिक .....
ReplyDeleteअनु
जो उसके हो ही नहीं सकते थे !!!
ReplyDeleteसही बात है\
ReplyDeleteरविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
ReplyDeleteहमारे भ्रष्ट समाज का सही चित्रण ...
ReplyDeleteuse to bas karte rahnaa hai,pet ke liye kisi tarah jeenaa hai
ReplyDeleteबेहद सुन्दर सटीक रचना, बधाई
ReplyDelete(अरुन शर्मा = arunsblog.in)
हर दर्द पर निगाह रहती है आपकी। वाकई सोचो तो कितना अज़ीब लगता है कि हमारी व्यवस्था किसी किसान के श्रम के मूल्य को संरक्षित तक नहीं कर पा रही है .....कितना निर्लज्ज और कठोर उपहास है यह श्रम के मूल्य का...
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