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Saturday, December 18, 2010
आज फिर बारिश ने धो डाली ज़मीन
आज फिर बारिश ने धो डाली ज़मीन
धुल गयी बादल के आँखों की नमी
स्याह सी परतें थी पलकों पर जमी
जाने कबसे थी बरसने को थमी
सोचती हूँ कुछ तो राहत होगी उसको
आई होगी दर्द में कुछ तो कमी
Friday, December 10, 2010
जिंदगी
मुझे क्या पता जिंदगी कल क्या दिखाएगी
खुशियों की बरसात होगी या आंसुओं की झड़ी लगाएगी
आज को दुरुस्त करने की कोशिशों में लगी हूँ
ये मजबूती ही उस वक़्त साथ निभाएगी
किसको मिलता है सबकुछ इस जहाँ में
और सब मिल गया तो कुछ पाने की चाहत कहा रह जाएगी
थोड़े से अधूरेपन में ही है पूरापन
ये अधूरी चाहतें ही कुछ पाने को उकसाएंगी
Friday, December 3, 2010
रात जाग कर काटी सारी
हर किताब क्यों इतनी भारी
प्रश्न पत्र यूँ हाथ में आया
जैसे कोई बड़ी बीमारी
खुसुर पुसुर, छींक और खांसी
उतरे चेहरे और उबासी
भूल गए सब जाने कैसे
मेहनत की थी अच्छी खासी
जैसे तैसे लिख डाला सब
समय उड़ गया न जाने कब
पता चलेगा बोया कटा
नंबर के फल आयेगे जब
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ranjana
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ... रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ... नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है.... सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
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