Friday, December 30, 2011
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...:)
जो बीत गया, वो गुज़र गया
था अच्छा या फिर बुरा सही
अब दूध नहीं बन पायेगा
जो जमकर के बन चुका दही
तो भी गम क्या है बहुत जतन
मथ डालो बन जाये मक्खन
फिर तपा इसे घी निकलेगा
हर मेहनत का फल निकलेगा
जो आज बहुत है सस्ता सा
उम्मीद से मंहगा निकलेगा
मेहनत की मिट्टी में बो दो
लोहा भी कुंदन निकलेगा
Tuesday, December 27, 2011
पुराने दर्द
कई बार उभर आते हैं पुराने दर्द
और हम भूल जाते हैं
की ये चोट लगी कैसे थी
फिर कोई मिलता जुलता इत्तफाक
याद दिला देता है उस चोट की
और हम वही मरहम
बता देते हैं उसे
जिसने नयी नयी खायी है वो चोट
और इस तरह
हम न सही कोई और सही
बच जाता है
दर्द भरे लम्बे एहसासों से
और हम भूल जाते हैं
की ये चोट लगी कैसे थी
फिर कोई मिलता जुलता इत्तफाक
याद दिला देता है उस चोट की
और हम वही मरहम
बता देते हैं उसे
जिसने नयी नयी खायी है वो चोट
और इस तरह
हम न सही कोई और सही
बच जाता है
दर्द भरे लम्बे एहसासों से
Thursday, December 22, 2011
इस बार की ठण्ड
होठों के बीच से फिसलती भाप
ठन्डे गाल, और गुलाबी नाक
बता रही है इस बार की ठण्ड
वो सब करवा डालेगी
जो आपने खुद को
स्मार्ट दिखाने के चक्कर में
आज तक नहीं किया
मंकी केप से लेकर मोटी जेकेट तक
मोफलर से लेकर शाल तक
हथेलियों को जेब में दबाये
उन्हें गर्म रखने की नाकाम कोशिशों में
खुद को खुद में ही समेटते हुए
नज़रें टिक जाती है ढाबों पर
धुआं उगलती गर्म चाय पर
धूप के निकलते ही
निकल आती है चारपाईयां
घर के आँगन में
और शुरू हो जाती है पंचायत
धूप में ताम्बई हुई ताई और चाचियों के बीच
दीवारों पर रखी आचार की बोतलों से शुरू हुई
ये पंचायत हरे साग और लहसुन के फायदों,
आचार बनाने की विधियों से लेकर
मोहल्ले के हर घर की
जन्मकुंडली तैयार कर डालती हैं
और मै बगल में अपनी कुर्सी पर बैठी
सुनती हूँ उनकी चटर पटर
काटती हूँ साग, छीलती हूँ मटर
और मुस्कुरा कर सहमती देती हूँ
उनकी हर एक बात पर
और घर के अन्दर आते ही
बन जाती हूँ उनकी चटर पटर का विषय
और पड़ोस वाली चाची कहती हैं
देखो इतनी देर से बैठी थी
लेकिन कुछ बोली नहीं
Monday, December 19, 2011
खुशियाँ
खुशियाँ यूँ ही दस्तक नहीं देती
किसी के दरवाज़े पर
वो आती है
बहुत लम्बा सफ़र तय करके
चलते फिरते उठते बैठते
जाने पहचाने और अनजाने लोगो के बीच
कभी कभी हम बाँट आते है
थोड़ी सी ख़ुशी
कभी कभी जान बूझ कर
तो कभी अनजाने मे
और वो बांटी हुई ख़ुशी
जब निकलती है आपने सफ़र पर
तो पलट कर दस्तक ज़रूर देती है
ये बताने के लिए
जो बांटा है वो कभी न कभी
आपके हिस्से में आयेगा ज़रूर
Tuesday, December 6, 2011
ख्वाहिशों के बीज
कुछ दिन पहले बोये थे
कुछ सपनो के बीज
ख्वाहिशों की मिट्टी में...
उम्मीद की ओस से नाम हुई मिट्टी में
कोपलें भी फूटने लगी थी
पर आज की धूप शायद
कुछ ज्यादा ही तेज़ थी
मिट्टी की नमी के साथ साथ
कोपलों को भी सुखा गयी...
पर कोई बात नहीं
फिर उम्मीदें जागेंगी
फिर खाव्हिशों के बीज बोये जायेंगे
ओस का गिरना और धूप का आना भी
यूँ ही जारी रहेगा
लेकिन....
कभी तो धूप
ओस की नमी से हारेगी
और नन्ही कोपलें बाज़ी मारेंगी...:)
Saturday, December 3, 2011
चलते फिरते कैमरे में
दीवारों पर परछाइयों की आड़ी टेढ़ी रेखाएं
ढलते सूरज की सुनहरी धूप का पीलापन
पत्तों पर जमी हुई ओस
या हवा के थपेड़ों में लहराते पेड़
हर एक पल समेट लेना चाहती हूँ
ताकि लम्हे के गुज़र जाने के बाद भी
थमा सा रह जाये वो लम्हा कहीं
इस बार क्रिसमस पर संता क्लाउस
तुम मेरे पास ज़रूर आना
और देना मुझे मेरा गिफ्ट
एक डिजिटल एसएलआर
क्योंकि अब मेरा नन्हा सा डिजिटल केमरा
मेरी सोच की उड़ान के साथ दौड़ नहीं पाता
और पूरी मेहनत के बाद भी सुकून न मिले
ये मुझे नहीं भाता
Tuesday, November 29, 2011
Monday, November 7, 2011
मेरी कभी भी याद न आये
Friday, November 4, 2011
सर्दियां
Tuesday, November 1, 2011
Birthday Remainder
ऑरकुट पर आ रहा है
एक Birthday Remainder
एक प्यारी सी लड़की का
और मै न चाहते हुए भी
पहुच जाती हूँ उसकी प्रोफाइल तक
खुद को रोकते टोकते हुए भी
मै जानती हूँ वो कोई स्क्रैप नहीं देखने वाली
न ही कोई Reply करेगी
लेकिन उसके आंखे, उसकी चुप्पी
उसकी मोतियों सी लिखावट
सब अभी भी याद है मुझे
पर इस बार वो नहीं होगी
अपनी क्लास में केक काटने के लिए
और उसका चेहरा chocolate और Cream से
नहाया हुआ नहीं होगा
पर ऑरकुट को क्या पता की अब वो कहा है ?
उसकी उँगलियाँ अब किबोर्ड की पहुच से कितनी दूर है ?
वो अपनी प्रोफाइल delete करने नहीं आ सकती
पर अपने Birthday Remainder के साथ ही याद दिला जाती है सबकुछ
हाँ याद है क्योंकि ...
अब सिर्फ यादें ही तो हैं उसकी
वो तो चली गयी सिर्फ यादों के कुछ लम्हे देकर
अपने जन्मदिन आने से कुछ दिन पहले
तो आज मै तुम्हे याद करके ये कहना चाहूंगी
की हाँ तुम जिंदा हो
आज भी हमारी यादों में
और हम आज भी तुम्हे वैसे ही Birthday Wish करते हैं
जैसे पहले किया करते थे
आज भी और आगे भी आता रहेगा तुम्हारा Remainder
फसबुक और ऑरकुट पर
और हम देते रहेंगे तुम्हे शुभकामनाएं
की जहाँ भी रहो ...खुश रहो !!!!
एक Birthday Remainder
एक प्यारी सी लड़की का
और मै न चाहते हुए भी
पहुच जाती हूँ उसकी प्रोफाइल तक
खुद को रोकते टोकते हुए भी
मै जानती हूँ वो कोई स्क्रैप नहीं देखने वाली
न ही कोई Reply करेगी
लेकिन उसके आंखे, उसकी चुप्पी
उसकी मोतियों सी लिखावट
सब अभी भी याद है मुझे
पर इस बार वो नहीं होगी
अपनी क्लास में केक काटने के लिए
और उसका चेहरा chocolate और Cream से
नहाया हुआ नहीं होगा
पर ऑरकुट को क्या पता की अब वो कहा है ?
उसकी उँगलियाँ अब किबोर्ड की पहुच से कितनी दूर है ?
वो अपनी प्रोफाइल delete करने नहीं आ सकती
पर अपने Birthday Remainder के साथ ही याद दिला जाती है सबकुछ
हाँ याद है क्योंकि ...
अब सिर्फ यादें ही तो हैं उसकी
वो तो चली गयी सिर्फ यादों के कुछ लम्हे देकर
अपने जन्मदिन आने से कुछ दिन पहले
तो आज मै तुम्हे याद करके ये कहना चाहूंगी
की हाँ तुम जिंदा हो
आज भी हमारी यादों में
और हम आज भी तुम्हे वैसे ही Birthday Wish करते हैं
जैसे पहले किया करते थे
आज भी और आगे भी आता रहेगा तुम्हारा Remainder
फसबुक और ऑरकुट पर
और हम देते रहेंगे तुम्हे शुभकामनाएं
की जहाँ भी रहो ...खुश रहो !!!!
Friday, October 28, 2011
Thursday, October 20, 2011
ईश्वर अगर तुम हो
ईश्वर अगर तुम हो
तो लोग अपंग क्यों है?
कितनो की आँखों में रौशनी नहीं
उनके सपने बेरंग क्यों है?
क्यों कुछ मासूम
जिंदगी घुट घुट कर बिताते हैं
क्यों भोले लोग ही
अक्सर सताए जाते हैं
क्यों अनाज पैदा करने वाले किसान
भूख से मर जाते हैं
क्यों नेता देश को
नोच नोच कर खाते हैं
ईश्वर अगर तुम हो
तो मुझे बताना ज़रूर
क्योंकि मैंने सुना है
गलती केवल इंसानों से होती है
तो लोग अपंग क्यों है?
कितनो की आँखों में रौशनी नहीं
उनके सपने बेरंग क्यों है?
क्यों कुछ मासूम
जिंदगी घुट घुट कर बिताते हैं
क्यों भोले लोग ही
अक्सर सताए जाते हैं
क्यों अनाज पैदा करने वाले किसान
भूख से मर जाते हैं
क्यों नेता देश को
नोच नोच कर खाते हैं
ईश्वर अगर तुम हो
तो मुझे बताना ज़रूर
क्योंकि मैंने सुना है
गलती केवल इंसानों से होती है
Wednesday, September 28, 2011
भूख जब हो जोर की तो चाँद भी रोटी दिखे...:)
जाने क्यों हर गम बड़ा
और हर ख़ुशी छोटी लगे
खुद का दिल जब साफ़ न हो
हर नियत खोटी लगे
हो ज़हन में जो भी
दिखता है वही हर एक जगह
भूख जब हो जोर की
तो चाँद भी रोटी दिखे...:)
और हर ख़ुशी छोटी लगे
खुद का दिल जब साफ़ न हो
हर नियत खोटी लगे
हो ज़हन में जो भी
दिखता है वही हर एक जगह
भूख जब हो जोर की
तो चाँद भी रोटी दिखे...:)
Saturday, September 24, 2011
कुछ लिखा कुछ अनलिखा सा रह गया
Sunday, September 4, 2011
आज की ताज़ा खबर
हाथों में थी चाय गरम
मौसम भी था बहुत नरम
तभी सुना बारिश का शोर
कपडे छत पर, भागी जोर
लेकर मै कपड़ों का ढेर
भागी नहीं लगायी देर
सीढ़ी पर जब रखा पैर
फिसली, गयी हवा में तैर
गिरी फर्श पर हुई धडाम
कैसे पूरा होगा काम ...:(
Friday, August 26, 2011
क़ल कंप्यूटर के संग मैंने काटी सारी रात
आँखों में मोनिटर था और माउस पर था हाथ
नींद बार बार कहती थी सो जा अब तू सो जा
क़ल ऑफिस भी तो जाना है सपनो में अब खो जा
लेकिन बोझ काम का मेरी थाम रहा था बांह
पलकें मुंद कर बोल रही थी सोने की है चाह
बड़ी देर तक चली बहस पर नींद अंत में जीती
रात ३ से ७ बजे तक खर्राटों में बीती
Wednesday, August 17, 2011
हम गुज़ारिश क्यों करे
हम गुज़ारिश क्यों करे
उनसे सिफारिश क्यों करें
यूँ उदासी ओढ़ कर
अश्कों की बारिश क्यों करे
ले हुनर और हौसला
जुट जाएँ हम मैदान में
हम करें ख़ारिज उन्हें
हमको वो ख़ारिज क्यों करें
सोच के पंखों को हम
परवाज़ दें कुछ इस कदर
ढूंढे नयी मंजिल
गए जख्मों में खारिश क्यों करें
उनसे सिफारिश क्यों करें
यूँ उदासी ओढ़ कर
अश्कों की बारिश क्यों करे
ले हुनर और हौसला
जुट जाएँ हम मैदान में
हम करें ख़ारिज उन्हें
हमको वो ख़ारिज क्यों करें
सोच के पंखों को हम
परवाज़ दें कुछ इस कदर
ढूंढे नयी मंजिल
गए जख्मों में खारिश क्यों करें
Wednesday, August 3, 2011
बूंदे
अक्सर आसमान में
जब दिखतें हैं काले बादल
उनके बरसते ही
टकराती है बूंदे
कांच की खिडकियों से
तो खोल देती हूँ मै कपाट
भिगोने देती हूँ चेहरा
ये सोच कर
की बूंदों की नमी के बीच
किसी के न होने की कमी
शायद पूरी हो जाये
क्योंकि ये भी वही से आई हैं
जहाँ बैठे है कुछ लोग
जिनके न होने पर भी
उनकी शिनाख्त कराता रहता है
रगों में बहता लहू
वो न सही, शायद उनका प्यार हो
जो बन के बूंदे बरस रहा है
उन सब पर जो
महसूस कर सकतें हैं उन्हें
Friday, July 29, 2011
तल्खियों की बदजुबानी
तल्खियों की बदजुबानी
में भी होती है कहानी
दिल का बह जाता ज़हर सब
बचता है मीठा सा पानी
गम की हर एक धूप ढल जाती है
कितनी भी चटख हो
सुख के बादल जब बरसते है
ज़मीं हो जाती धानी
जिंदगी को मुस्कुरा कर
देख लो बस एक नज़र भर
सबकी एक जैसी ही है
तेरी हो या मेरी कहानी
में भी होती है कहानी
दिल का बह जाता ज़हर सब
बचता है मीठा सा पानी
गम की हर एक धूप ढल जाती है
कितनी भी चटख हो
सुख के बादल जब बरसते है
ज़मीं हो जाती धानी
जिंदगी को मुस्कुरा कर
देख लो बस एक नज़र भर
सबकी एक जैसी ही है
तेरी हो या मेरी कहानी
Monday, July 25, 2011
चले आओ...चले आओ
कही एक राह कच्ची सी
किसी मासूम बच्ची सी
मुझे आवाज़ देती है
चले आओ...चले आओ
दिखावे का चलन छोड़ो
वहम जितने भी है तोड़ो
अरे अब तो कदम मोड़ो
चले आओ...चले आओ
भिगो कर खुद को बारिश में
दिल-ए-खुद की सिफारिश में
मौसम की गुज़ारिश में
चले आओ...चले आओ
चलो हीरों को हम ढूंढे
बटोरे फूल पर बूंदे
कही बैठें पलक मूंदे
चले आओ...चले आओ
घने पत्तों की छाँव में
किसी छोटे से गाँव में
पहन पाजेब पाँव में
चले आओ...चले आओ
ये माना राह पथरीली
कही सूखी..कहीं गीली
कई नज़रें हैं ज़हरीली
चले आओ...चले आओ
की अब तो मान लो अपना
मै सच हूँ, हूँ नहीं सपना
तुम्हारा नाम है जपना
चले आओ...चले आओ
किसी मासूम बच्ची सी
मुझे आवाज़ देती है
चले आओ...चले आओ
दिखावे का चलन छोड़ो
वहम जितने भी है तोड़ो
अरे अब तो कदम मोड़ो
चले आओ...चले आओ
भिगो कर खुद को बारिश में
दिल-ए-खुद की सिफारिश में
मौसम की गुज़ारिश में
चले आओ...चले आओ
चलो हीरों को हम ढूंढे
बटोरे फूल पर बूंदे
कही बैठें पलक मूंदे
चले आओ...चले आओ
घने पत्तों की छाँव में
किसी छोटे से गाँव में
पहन पाजेब पाँव में
चले आओ...चले आओ
ये माना राह पथरीली
कही सूखी..कहीं गीली
कई नज़रें हैं ज़हरीली
चले आओ...चले आओ
की अब तो मान लो अपना
मै सच हूँ, हूँ नहीं सपना
तुम्हारा नाम है जपना
चले आओ...चले आओ
Friday, July 1, 2011
मुश्किल बहुत ये बात है तो क्या?
क्यों आंखे नम करू
फहरिस्त गम की साथ है तो क्या?
मै नन्हा सा दिया
लम्बी बहुत ये रात है तो क्या?
क्यों गम के ज़िक्र में
बर्बाद करू कीमती ये पल?
तलाशूँ हल कोई
मुश्किल बहुत ये बात है तो क्या?
खुदा पर क्यों भरोसा करके
बैठूं हर मुसीबत में?
मुझे मालूम है की सिर पे
उसका हाथ है तो क्या?
तराशे पत्थरों को
मान लेते हैं खुदा जब लोग
मुझे रब ने तराशा
खुद में खुदा को मान लूँ तो क्या?
Tuesday, May 31, 2011
Sunday, May 29, 2011
Friday, May 27, 2011
Monday, May 16, 2011
आओ ढूँढ निकाले
सारी परेशानियाँ
घर के हर कोने से,
दिमाग से
ऑफिस की पोलिटिक्स से
रिश्तों के ताने बाने से
फैलते खर्चों से
घटती आमदनी से
बढती जरूरतों से
गर्मी के उफान से
उम्र की ढलान से
बच्चों की मोटी फीस से
मन की टीस से
और फिर सलेक्ट आल करके
दबा दे डिलीट का बटन
फिर रिसाइकिल बिन को भी
खंगाल डाले
न रहे परेशानियाँ
न उनका कोई निशान
और फिर जिंदगी को जिए
सीना तान....
...जानती हूँ मै
बहुत बचकाना सा ख्वाब है ये
पर सुनी है मैंने ये कहावत
की जब ख्वाब ही देखने है तो
किचड़ी का क्यों??
बिरियानी का देखो...:)
सारी परेशानियाँ
घर के हर कोने से,
दिमाग से
ऑफिस की पोलिटिक्स से
रिश्तों के ताने बाने से
फैलते खर्चों से
घटती आमदनी से
बढती जरूरतों से
गर्मी के उफान से
उम्र की ढलान से
बच्चों की मोटी फीस से
मन की टीस से
और फिर सलेक्ट आल करके
दबा दे डिलीट का बटन
फिर रिसाइकिल बिन को भी
खंगाल डाले
न रहे परेशानियाँ
न उनका कोई निशान
और फिर जिंदगी को जिए
सीना तान....
...जानती हूँ मै
बहुत बचकाना सा ख्वाब है ये
पर सुनी है मैंने ये कहावत
की जब ख्वाब ही देखने है तो
किचड़ी का क्यों??
बिरियानी का देखो...:)
Thursday, April 21, 2011
Tuesday, April 12, 2011
कुछ सूनापन कुछ सन्नाटा
मन ने नहीं किसी से बाँटा
दर्द न जाने क्यों होता है
दीखता नहीं मुझे वो काँटा।
गुमसुम-सी खिड़की पर बैठी
आते जाते देखूँ सबको
अपने से सारे लगते हैं
तुम बोलो पूजूँ किस रब को।
पुते हुए चेहरों के पीछे का
काला सच दिख जाता है
दो रूपए ज़्यादा दे दो तो
यहाँ ख़ुदा भी बिक जाता है।
नहीं लोग अपने से लगते
नहीं किसी से कह सकते सब
सब इंसा मौसम के जैसे
जाने कौन बदल जाये कब?
दौड़ में ख़ुद की जीत की ख़ातिर
कितने सर क़दमों के नीचे
हुनर कोई भी काम न आया
सारे दबे नोट के नीचे।
मेहनत की चक्की में पिस कर
दिन पर दिन घिसती जाती हूँ
मै चिटके बर्तन के जैसी
लगातार रिसती जाती हूँ
http://kavita।hindyugm.com/2010/05/main-toote-bartan-ke-jaisi.html
मन ने नहीं किसी से बाँटा
दर्द न जाने क्यों होता है
दीखता नहीं मुझे वो काँटा।
गुमसुम-सी खिड़की पर बैठी
आते जाते देखूँ सबको
अपने से सारे लगते हैं
तुम बोलो पूजूँ किस रब को।
पुते हुए चेहरों के पीछे का
काला सच दिख जाता है
दो रूपए ज़्यादा दे दो तो
यहाँ ख़ुदा भी बिक जाता है।
नहीं लोग अपने से लगते
नहीं किसी से कह सकते सब
सब इंसा मौसम के जैसे
जाने कौन बदल जाये कब?
दौड़ में ख़ुद की जीत की ख़ातिर
कितने सर क़दमों के नीचे
हुनर कोई भी काम न आया
सारे दबे नोट के नीचे।
मेहनत की चक्की में पिस कर
दिन पर दिन घिसती जाती हूँ
मै चिटके बर्तन के जैसी
लगातार रिसती जाती हूँ
http://kavita।hindyugm.com/2010/05/main-toote-bartan-ke-jaisi.html
Monday, March 28, 2011
Sunday, March 27, 2011
Thursday, March 24, 2011
Saturday, March 19, 2011
Tuesday, March 15, 2011
जो बरस कर थम चुका है
वो कही पर जम चुका है
सुर्ख गाढ़े से लहू सा
धमनियों में रम चुका है
दर्द देकर दूसरों को
कब किसी का गम चुका है
प्यार की मीठी नज़र पर
आसमान का सर झुका है
सूनी सी टहनी पर फिर से
फूल कोई खिल चुका है
चुप हैं वो बरसों से जैसे
होंठ कोई सिल चुका है
आसमान का चाँद तो
अपनी पहुँच में था नहीं
लहरों पर उसका चमकता
अक्स हमको मिल चुका है
Saturday, February 19, 2011
आंगन फिर से हरा है
देख रही हूँ
एक सूखा पौधा फिर से हरा होता
उसकी मिट्टी में फिर से सुगंध है
फूट रही हैं कोपलें
और वो सख्त टहनियां
जो छूते ही चुभ जाती थी
अब नरम होती जा रहीं है
पहले मै बचा कर निकलती थी
इससे अपना आंचल
अब पोंछ देती हूँ अपने आंचल से
इसकी कोपलों पर जमी धूळ
मन है प्रसन्न क्योंकि
बहुत दिनों बाद
आंगन फिर से हरा है
खुशियों से भरा है
Tuesday, February 15, 2011
खोजते हो क्यों मुझे
खोजते हो क्यों मुझे
बनकर हवा मै बह गयी
हर्फ़ जो किस्मत में थे
तुमसे सभी वो कह गयी
चांदनी अब भी है रोशन
रात है अब भी जवां
फिर तुम्हे लगता है क्यों
की कुछ कमी सी रह गयी
रिश्तों की दीवार में
शायद नमी ज्यादा ही थी
हल्का सा झोंका जो आया
भरभरा कर ढह गयी
वक़्त कर देता है दिल को सख्त
अब आया यकीन
कितने सारे हादसे
मै मुस्कुरा कर सह गयी
Wednesday, January 26, 2011
इन्क्रीमेंट से पहले
जबतक मिलता रहता है कर्म का फल
लगता है जीवन कितना है सफल
हर बोये हुए बीज का फल मिलेगा
जिसे सींचा है बड़ी लगन से वो फूल खिलेगा
हम चखेंगे मिठास, महसूस करेंगे सुगंध
महक उठेगा मन मकरंद
इंक्रीमेंट के बाद
जब आपकी मेहनत किसी और का बहीखाता सजाती है
जब उनतक गड्डियां और आपतक कोड़ियां आती हैं
जब आपके लिए सिर्फ काम और उनके लिए सिर्फ दाम होते है
आपकी सांसे हराम, और उनके लिए सिर्फ आराम होते हैं
तो हर पल आता है एक नया ख्याल
बजा दो तमांचो से सामने वाले का गाल
फंसा दो काम ऐसे की न घर रहे न घाट
लगा दो उसकी जमकर वाट
मना कर दो हर काम, करके बहाना
याद दिला दो उसकी नानी और नाना
उसके बालों से बांध कर उसे पंखे पर दो टांग
छोड़ आओ चौराहे पर पिलाकर भांग
फिर छोड़ दो पागल कुत्ते उसके पीछे
कोई कुत्ता आगे, कोई पीछे से खींचे
तब शायद आये थोड़ी सी राहत
बस इतनी ज़रा सी है मेरी चाहत
ये कविता केवल मन की भड़ास निकलने के लिए लिखी गयी है.
इसलिए इसको पढ़े, मुस्कुराएँ और भूल जाएँ.
इसलिए इसको पढ़े, मुस्कुराएँ और भूल जाएँ.
Thursday, January 6, 2011
ढूंढ रही हूँ शब्द सुनहरे
ढूंढ रही हूँ शब्द सुनहरे
रंगने को कुछ कवितायेँ
सभी शब्द कच्चे रंगों से
कोई मन को न भाये
लिखा बहुत कुछ सब बेमानी
बिना प्राण के तन जैसा
ऋतू बसंत आने से पहले
पतझड़, निर्जन वन जैसा
मन के घाव बहे न जबतक
नैनों के गलियारे से
गालों से होकर होठों को
कर जाएँ जब खारे से
तब उगती है कोई कविता
तब बनता है कोई गीत
सदियों से सच्चे लेखन की
एक यही एकलौती रीत
रंगने को कुछ कवितायेँ
सभी शब्द कच्चे रंगों से
कोई मन को न भाये
लिखा बहुत कुछ सब बेमानी
बिना प्राण के तन जैसा
ऋतू बसंत आने से पहले
पतझड़, निर्जन वन जैसा
मन के घाव बहे न जबतक
नैनों के गलियारे से
गालों से होकर होठों को
कर जाएँ जब खारे से
तब उगती है कोई कविता
तब बनता है कोई गीत
सदियों से सच्चे लेखन की
एक यही एकलौती रीत
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