Thursday, March 24, 2011



क्या पाया, क्या पाकर खोया
क्या काटा और क्या क्या बोया


किस्मत के धोबी ने हमको
हर पत्थर पर जमकर धोया


गर्दन करके कलम मेरी

वो बोले ये क्यों कम है रोया


मेरा सपना डर के मारे
रातों को भी रहता सोया

हमने बड़ी ख़ुशी से
हर एक बोझ जिंदगी का है ढोया


ग़ालिब होते तो कहते
मेरा गम भी कोई गम था मोया

3 comments:

  1. kavita likhte hue ek baat ka dhyan rakhen shabd phaltoo kharch na karen. kul milakar achha prayas.

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  2. रंजना जी , कुछ पंक्तियाँ बहुत शानदार बन पडीं हैं , जैसे
    किस्मत के धोबी ने हमको
    हर पत्थर पर जमकर धोया
    कुछ मैं सलाह देना चाहूंगी ..
    हमने बड़ी ख़ुशी से
    हर एक बोझ जिंदगी का है ढोया
    इन पंक्तियों को ऐसे भी किया जा सकता है ...
    हमने बड़ी ख़ुशी से देखो
    बोझ जिन्दगी का है ढोया
    और इन को ..
    ग़ालिब होते तो कहते
    मेरा गम भी कोई गम था मोया
    ग़ालिब होते तो कहते
    मेरा गम भी क्या गम है गोया
    ग़ालिब की जुबान में गोया शब्द बहुत आया था ...और ये शब्द मजेदार सा लग रहा है ..यानि मेरा कम कितना हल्का है ...मोया तो पंजाबी में मरे की तरह कहा जाता है .
    हमारी वाणी पर रजिस्टर कर लो ..ज्यादा लोग पढ़ सकेंगे ...

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  3. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

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