धुल गयी बादल के आँखों की नमी
स्याह सी परतें थी पलकों पर जमी
जाने कबसे थी बरसने को थमी
सोचती हूँ कुछ तो राहत होगी उसको
आई होगी दर्द में कुछ तो कमी
सरहदों की हदें तय तो कर दी मगर,
हसरतों की हदों पर न कब्ज़ा हुआ....
कब ज़मीन पूछती है कहाँ से हो तुम?
जब किसी बूँद ने उसके तन को छुआ।
क्या कभी धूप को खुरदुरे फर्श पर...
कोई पौधा सवालों का बोते सुना?
क्या कभी ओस ने पूछ मज़हब शहर,
वादियों के किसी ख़ास गुल को चुना?
क्या कभी चाँद तारों ने अपनी चमक
बांटते वक़्त सोचा यहाँ या वहां?
फिर क्यों हम बांटते? फिर क्यों हम काटते?
लेके जाएगी ये सोच हमको कहाँ?
ऑफिस के
वातानुकूलित कमरे में बैठ कर
खिडकियों के काले शीशों के बाहर
दिखाई देते लोग
पेड़, मकान, सड़क, मौसम
दिखते है कितने सुन्दर
लेकिन बिजली के चले जाने के
कुछ पलों बाद ही
महसूस होने लगती है
दूर से दिखाई देती
सुन्दरता का सच
पसीने से भीगते शरीर
तपती हुई छतें
पिघलती सड़कें
झुलसते पेड़
उबलता मौसम...
सच है जब तक
खुद को चोट न लगे
दर्द महसूस नहीं होता
बड़े दिनों से न जाने
कितना कुछ मन में छुपा हुआ था
था कोई तूफ़ान
न जाने कैसे अबतक रुका हुआ था
एक बहुत मज़बूत इमारत
धीरे धीरे दरक रही थी
आज मोम बन पिघल रही थी
मन में जो भी कसक रही थी
गहराई की सारी सीमा
भरते भरते आज भरी थी
मै जितनी मासूम थी दिल से
दुनिया उतनी सख्त कड़ी थी
सब कुछ सहा अकेले मैंने
दर्द भरे दिन - दुःख की रातें
फिर भी लोग चला करते हैं
कितनी साजिश, गहरी घातें
रो लेती हूँ सबसे छुप कर
लिख लेती हूँ कागज़ पर गम
पन्ने हो जाते हैं गीले
बोझ दर्द का थोडा सा कम
दुनिया की गडित मेरे पल्ले नहीं पड़ती,
मै फायदा देख कर आगे नहीं बढती.
मुझे नहीं पसंद गोरे चेहरे और काले दिल वालों की चमचागिरी,
मुझे तो लगती है भली हर वो बात जो है सोने सी खरी.
मुझे कपड़ों और गहनों से ज्यादा लम्हों की खूबसूरती भाती है,
मुझे पसंद है वो खुशबु जो मंदिर में धूप जलाने से आती है.
बातों को बढ़ा चढ़ा कर बोलना मुझे नहीं आता,
मै नहीं खोल सकती बात बात पर झूठ का खाता.
मेरे मंदिर में अल्ला, राम, खुदा सालों से साथ साथ रहते हैं,
फिर लोग क्यों ज़मीन बाटो, देश बाटो कहते है?
मुझे कभी नहीं लुभा पाता कीमती कपड़ों में दमकता रूप,
मुझे भाती है खुले दिमाग की गुनगुनी धूप.
मै कोई संत नहीं जिसमे मोह नहीं माया नहीं,
लेकिन मै जो हूँ वो हूँ, खुद को छुपाना मुझे आया नहीं।
मै अक्सर देखती हूँ छोटे छोटे फायदों के लिए पलते षड्यंत्र,
कब सीखेगे लोग जीवन जीने का असली मन्त्र?