Saturday, August 7, 2010

अब नयी एक इमारत बनायेगे हम








क्यों सहूँ , क्यों रहूँ दर्दो गम के तले
क्यों रहे यूँ नमी मेरी पलकों तले
क्यों मै सिलती रहू चिंदिया हर घडी
जब पता है, है रिश्ते के धागे गले

क्यों देखू मै ख्वाबों का बिखरा लहू
क्यों डरूं जब कोई चाह दिल में पले
क्यों चुभे मुझको रोशन सा दिन आजकल
क्यों मिलती है राहत अंधेरों तले

क्यों पुकारूँ वही नाम हर हाल में
जिनके कानो में रुई के फाहे पड़े
अब नयी एक इमारत बनायेगे हम
हम क्यों खोदे पुराने वो मुर्दे गड़े


(घरेलू हिंसा की त्रासदी सहती हुई हर नारी को समर्पित)

4 comments:

  1. क्यों पुकारूँ वही नाम हर हाल में
    जिनके कानो में रुई के फाहे पड़े
    अब नयी एक इमारत बनायेगे हम
    हम क्यों खोदे पुराने वो मुर्दे गड़े............


    badi sach kahi aapne........!!
    awaj buland karnee hi hogi...

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  2. Ranjana ji...

    Sundar abhivyakti...

    Deepak

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  3. Ranjana jee sahee disha me sandesh detee bahut hee sabal rachana.......
    nirbharta kee bhavna se ubharna bahut hee jarooree hai apana astitv banae rakhanae ke leye.....
    bahut hee samvedansheel rachana........
    Aabhar.

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  4. समाज की संचेतना का शंखनाद ।
    प्रशंसनीय ।

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