मै अकेली कब थी
तुम गए तो तन्हाई आ गयी
चहकती रही मेरे साथ
बतियाती रही रात भर
कभी इस करवट लेट जाती
कभी उस करवट
कभी जोर से कहकहे लगाती
कभी आह भर कर चुप हो जाती
कभी गुनगुनाती कोई पुराना सा गीत
कभी याद दिलाती पुरानी बातें
की सर्दियों में माँ स्वेटर की जेब में
ढेर सारी मूंगफली भर देती थी
और हम उसे खाते हुए
निकल जाते थे दूर तक बतियाते हुए
सुबह झुण्ड बनाकर साईकिल से
मोर्निंग वाक पर जाना भी याद है
वो नीरजा भी याद है
जो मुझे जगाने आती थी
और मेरी नींद खुलने के इंतज़ार में
अक्सर वो भी मेरे साथ सोती रह जाती थी
मुझे याद है तरबूज काटने से पहले
उसपर मै चेहरा बना दिया करती थी
चाकू से कुरेद कर
एक दिन पापा ने टोका था
बेटा ऐसा मत किया करो
लगता है किसी की बलि दे रही हो
ऐसे ही न जाने कितने पल
सुनते सुनाते रहे हम रात भर
और लो सुबह हो गयी
तनहाई भी उबासियाँ ले रही है
और कह रही है
यार रात कैसे कट गयी
पता ही नहीं चला?
- रंजना डीन