बचपन
मै खोल कर बैठी हूँ बचपन का पिटारा
जुगनू हैं ढेरों और एक नन्हा सितारा
कुछ फूल हरसिंगार के सूखे पड़े हैं
जो बिन फुलाए रह गया, वो एक गुब्बारा
गुडिया का एक बिस्तर भी था अब याद आया
माचिस पे कपडा बांध कर तकिया बनाया
पापा ने जब मुझको पलंग ला कर दिया न
एक मोटी सी किताब पर गद्दा लगाया
गुडिया के कपड़ों की थी एक गठरी बनायीं
एक घर भी था उसका, हुई उसकी सगाई
माँ जब भी सिलती थी कोई भी फ्रोक मेरी
गुडिया के कपड़ों की मै करती थी सिलाई
मुझको अभी भी याद है की माँ ने मेरी
मेरे लिए मिटटी की एक चिड़िया बनायीं
और लाल पीले रंग से रंग था उसको
और दाल के दाने से थी आंखे बनायीं
एक बार गुस्से में पटक दी थी वो चिड़िया
जब टूट कर दो हो गयी रोई बहुत मै
फिर फेंक कर टूटे हुए टुकड़ों को उसके
रोई थी मै, शायद तभी सोयी बहुत मै
जागी तो देखा भीगते बारिश में टुकड़े
रंगों को अपने छोड़ते थे लाल पीले
ये देख कर उस दिन सुबक सी मै उठी थी
और हो गए थे आँखों के कोरे पनीले
न जाने कितनी और भी यादें है ताज़ा
कितनी कहानी और कितने रानी राजा
दिल बोल पड़ता है अभी भी ऊबने पर
तू हैं कहाँ बचपन? पलट के वापस आ जा