सोंधी सी मिटटी के तपे हुए दीपक में सुनहरी लौ आज फिर जगमगाई है रंगोली रंगों की, मनचाहे ढंगों की हर घर की चौखट पर फिर मुस्कुरायी है घनघोर काली सी एक रात पर
फिर से नन्हे से दीपक ने जीतकर दिखाई है
मित्रो को, सखियों को, गैरों को अपनों को
छोटो को - बडको को, सबको बधाई है
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.