तेरी याद
गिरी असमान से
गिरी असमान से
फंसी टहनियों पर
फिसल कर न जाने
कहाँ गिर पड़ी है
तेरी याद कोने में
छुप कर थी बैठी
घनी रात तक मुझसे
जमकर लड़ी है
इसे देख कर
फेर लेती हूँ चेहरा
मगर ढीठ ऐसी
ये अबतक खड़ी है
नहीं हार मानी है
मैंने किसी से
मगर इससे हारी
ये जिद्दी बड़ी है
सच्ची....बड़ी जिद्दी होती हैं ये यादें.....
ReplyDeleteसुन्दर!!!
अनु
नहीं हार मानी है
ReplyDeleteमैंने किसी से
मगर इससे हारी
ये जिद्दी बड़ी है ....
इसके ही मारे हम भी पड़े है रंजना जी
मजेदार और उम्दा कविता
आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।धन्यवाद !!
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
वाह क्या बात है यादें तो पागल हैं हमे भी पागल कर देंगी.
ReplyDeleteआज 03 - 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ... चलो अपनी कुटिया जगमगाएँ .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
यादे पीछा नहीं छोडती ..
ReplyDeleteएक बार ज़ज्ब हो जाये तो फिर यादें कहाँ छोडती है है साथ. सुन्दर रचना.
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