Friday, November 2, 2012

तेरी याद

गिरी असमान से
फंसी टहनियों पर 
फिसल कर न जाने 
कहाँ गिर पड़ी है 

तेरी याद कोने में 
छुप कर थी बैठी 
घनी रात तक मुझसे 
जमकर लड़ी है 

इसे देख कर
फेर लेती हूँ चेहरा 
मगर ढीठ ऐसी 
ये अबतक खड़ी है 

नहीं हार मानी है 
मैंने किसी से 
मगर इससे हारी 
ये जिद्दी बड़ी है 

6 comments:

  1. सच्ची....बड़ी जिद्दी होती हैं ये यादें.....

    सुन्दर!!!

    अनु

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  2. नहीं हार मानी है
    मैंने किसी से
    मगर इससे हारी
    ये जिद्दी बड़ी है ....
    इसके ही मारे हम भी पड़े है रंजना जी
    मजेदार और उम्दा कविता

    आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।धन्यवाद !!

    http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html

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  3. वाह क्या बात है यादें तो पागल हैं हमे भी पागल कर देंगी.

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  4. यादे पीछा नहीं छोडती ..

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  5. एक बार ज़ज्ब हो जाये तो फिर यादें कहाँ छोडती है है साथ. सुन्दर रचना.

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