इस राह पर चलते चलते
आओ चलें
सबकुछ भूल
बाँहों में बाहें डाले
कंधे पर सर टिकाये
इस लम्बे से रास्ते पर
शायद इस दूरी को
तय करते करते
दूर हो जाएँ
आपस की दूरियां
तुम समझ सको मेरी
मै समझ सकूँ
तुम्हारी मजबूरियां
यूँ ही थकते संभलते
गिरते उठते
शायद संभलना
और संभालना आ जाये
सख्त होती रूखी टहनियों पर
फिर से कुछ नमी आ जाये
यूँ ही कदम मिलाकर
साथ चलते चलते
याद आ जाएँ शायद तुम्हे
सप्तपदी के सातों वचन
और मै तुम फिर हम हो जाएँ
इस राह पर चलते चलते
सप्तपदी के वचन आपकी कविताओं से खुबसूरत थोड़े न हैं
ReplyDeleteशायद इस दूरी को
ReplyDeleteतय करते करते
दूर हो जाएँ
आपस की दूरियां ... क्या कहने!!
आपकी पोस्ट ने खासा प्रभावित किया ... बेहद लाजवाब कविता
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
गहरा खयाल सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteशायद इस दूरी को
ReplyDeleteतय करते करते
दूर हो जाएँ
आपस की दूरियां
तुम समझ सको मेरी
मै समझ सकूँ
तुम्हारी मजबूरियां
वाह..बहुत खूब....