कई बार उभर आते हैं पुराने दर्द
और हम भूल जाते हैं
की ये चोट लगी कैसे थी
फिर कोई मिलता जुलता इत्तफाक
याद दिला देता है उस चोट की
और हम वही मरहम
बता देते हैं उसे
जिसने नयी नयी खायी है वो चोट
और इस तरह
हम न सही कोई और सही
बच जाता है
दर्द भरे लम्बे एहसासों से
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अक्सर उभरते हैं पुराने दर्द ....
ReplyDeleteसुन्दर रचना
अच्छी सुन्दर रचना.
ReplyDeleteआनेवाले नववर्ष की शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,रंजना जी.
बहुत प्यारी रचना..
ReplyDeleteयही तो है दुःख सांझा करना..
बहुत खूब.
yahi silsila - anvarat
ReplyDeleteवाह ! सुंदर रचना बेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा
ReplyDeleteऔर दूसरा बच जाता है दर्द के लम्बे एहसास से ...
ReplyDeleteघायल की गति घायल जाने !
भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
जिंदगी का एक सच , खूबसूरती से शब्दों में समेट कर रख दिया आपने
ReplyDeleteबहुत खूब ... अपने दर्द का इलाज तो ठीक है .. जरूरी नहीं दूसरे के भी काम आए ... लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeletedard bhulana aasan nahi..
ReplyDeleteyadi aadurini ho to wah aur bhi dukhprad hota hia..
dard mein piroyee badiya rachna...
behtreen bhaavo ki sundar rachna...
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