![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdxKZIkAgWyzNyNl65rqPrvYnU1L6diGqap2E_R8wV1C5_2YZ9AyLT5Slcyx4svi14Fs83DlOTKbv3eZlA7lzSnGc2Plnq45NY7w7SL7WcOCbbQqUIflfQC5KyuOtxo4Ul3inofip4CXHU/s320/images.jpg)
चलते फिरते कैमरे में
दीवारों पर परछाइयों की आड़ी टेढ़ी रेखाएं
ढलते सूरज की सुनहरी धूप का पीलापन
पत्तों पर जमी हुई ओस
या हवा के थपेड़ों में लहराते पेड़
हर एक पल समेट लेना चाहती हूँ
ताकि लम्हे के गुज़र जाने के बाद भी
थमा सा रह जाये वो लम्हा कहीं
इस बार क्रिसमस पर संता क्लाउस
तुम मेरे पास ज़रूर आना
और देना मुझे मेरा गिफ्ट
एक डिजिटल एसएलआर
क्योंकि अब मेरा नन्हा सा डिजिटल केमरा
मेरी सोच की उड़ान के साथ दौड़ नहीं पाता
और पूरी मेहनत के बाद भी सुकून न मिले
ये मुझे नहीं भाता
सुन्दर भावपूर्ण रचना....बधाई
ReplyDeleteआमीन ... आपकी मनोकामना जरूर पूर्ण हो ... जीवन के असल रंगों को आप उतार सकें केन्सास और कविता में ...
ReplyDeleteदिगम्बर जी, आपकी कविताएँ और शुभकामनाएं दोनों ही मेरे लिए प्रेरणा स्रोत हैं...सादर धन्यवाद....:)
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