Thursday, December 22, 2011
इस बार की ठण्ड
होठों के बीच से फिसलती भाप
ठन्डे गाल, और गुलाबी नाक
बता रही है इस बार की ठण्ड
वो सब करवा डालेगी
जो आपने खुद को
स्मार्ट दिखाने के चक्कर में
आज तक नहीं किया
मंकी केप से लेकर मोटी जेकेट तक
मोफलर से लेकर शाल तक
हथेलियों को जेब में दबाये
उन्हें गर्म रखने की नाकाम कोशिशों में
खुद को खुद में ही समेटते हुए
नज़रें टिक जाती है ढाबों पर
धुआं उगलती गर्म चाय पर
धूप के निकलते ही
निकल आती है चारपाईयां
घर के आँगन में
और शुरू हो जाती है पंचायत
धूप में ताम्बई हुई ताई और चाचियों के बीच
दीवारों पर रखी आचार की बोतलों से शुरू हुई
ये पंचायत हरे साग और लहसुन के फायदों,
आचार बनाने की विधियों से लेकर
मोहल्ले के हर घर की
जन्मकुंडली तैयार कर डालती हैं
और मै बगल में अपनी कुर्सी पर बैठी
सुनती हूँ उनकी चटर पटर
काटती हूँ साग, छीलती हूँ मटर
और मुस्कुरा कर सहमती देती हूँ
उनकी हर एक बात पर
और घर के अन्दर आते ही
बन जाती हूँ उनकी चटर पटर का विषय
और पड़ोस वाली चाची कहती हैं
देखो इतनी देर से बैठी थी
लेकिन कुछ बोली नहीं
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हहाहाहा.... देखो इतनी देर से बैठी थी
ReplyDeleteलेकिन कुछ बोली नहीं.... यह भी एक ठण्ड है
जाड़े के दिन का अच्छा वर्णन :-);-)
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सजीव प्रस्तुति...
ReplyDelete:-) बहुत प्यारी रचना...
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण सर्दी के सुहाने मौसम का..
सुन्दर चित्रण...
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-737:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
बोलना भी जरूरी है :))))
ReplyDeleteवाह! वाह! बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteसादर
बेहद खूबसूरत और सटीक विवरण ..
ReplyDeleteHaha.....sundar...!!
ReplyDeleteAgar boltin tum bhi sang main...
Matar unchhile rah jaate...
Saag unkata rahta tera....
Lab na hansi se khil paate...
Sardi main garmahat kitni..
Dhoop kahan ab hoti hai...
Baatain sumadhur gar na hon to..
Panchayat na judti hai...
Eski us se.. Us ki is se..
Yahi saar hai baaton ka..
Sardi ke ye din chhote se...
Thandi lambi raaton ka...
Divas gaye jab fande padte...
The har roj salaayi main..
Apne haathon se bharvakar..
Taag dale the rajayee main...
Ab to bas baatain hi hai...
Sundar kavita...
sundar chitran....
ReplyDeletewakai shandaar...aakhiri panktiyan man moh leti
ReplyDeletehai...aisa kai baar ghar me dekha ..par dhyan nahi diya..accha sukshmvakalokan
mere blog par bhee aapka swagat hai
hhttp://ashutoshmishrasagar.blogspot.com/2011/12/blog-post_20.html
Bahut hi achchhi kavita hai..
ReplyDeleteYou can also post your poems at
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"लेकिन कुछ बोली नहीं"
ReplyDeleteएक सच्चा वर्णन किया है... बहुत खूब
आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिनन्दन
प्लीज़ join my blog
आपने तो हालात को आईने में उतार दिया ... यथार्थ लिख दिया रचना के माध्यम से ...
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