आज बहुत दिन बाद दिखा आँगन सूखा
पानी की एक बूँद नहीं और धूप चटख
चिड़िया जो फुदका करती थी इधर उधर
उसको भी लगता है मौसम गया खटक
आँगन के पीछे एक पेड़ बड़ा सा है
सर सर करता था, देता था शीतल छांव
साथ छोड़ कर भाग रहे हैं पत्ते अब
लगता है पत्तों के भी निकले हैं पाँव
बहुत बुलाया, खेतों ने आवाजें दी
सुनकर सारे बीज कोपलें जाग गयी
दो बूंदे आंसू जैसी टपकाई और
बरखा रानी नखरे कर के भाग गयी
सूरज के तेवर कुछ ज्यादा चढ़े हुए
देर शाम तक दीखते हैं वो खड़े हुए
४ बजे जो भगा करते थे घर को
सरकारी जन ऑफिस में हैं पड़े हुए
बरखा रानी बहुत हुआ अब बरसो न
तुम भी धरती से मिलने को तरसो न
तुमको पाकर सबकुछ होगा हरा भरा
प्रेम बाँट कर अपना तुम भी हरसो न
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.......
ReplyDeletethanks Sushma...:)
Deleteखूबसूरती से बरखा रानी को आमंत्रण
ReplyDeleteसही कहा है बढ़िया रचना !
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकिसी के भी जीवन में व्यस्तता का बना रहना बहुत शुभ होता है...यही जीवन को चुस्त कसा रखती है..व्यस्तता कम या ज्यादा हो पर कभी ख़तम न हो...धन्यवाद प्रोत्साहन के लिए
ReplyDeleteसब कुछ बदल रहा है पर्यावरण में ... और अधिकांशतः हम ही जिमेवार हैं इन बातों के लिए ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ...
सुंदर अतिसुन्दर अच्छी लगी, बधाई
ReplyDeleteअच्छी रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.....
ReplyDeleteअनु