Sunday, June 17, 2012


करवटें बेतरतीब सी



















करवटें बेतरतीब सी
न पलकों को बंद होने दे
न आँखों को खुलने  दें
न नींद को आवाज़ दें
न सपनो को घुलने दें

करवटें बेतरतीब सी
बिस्तर पर सिलवटों को बढाती 
रात की ख़ामोशी को चिढाती
न जाने कैसे भूले बिसरे किस्से सुनाती
हर आहट पर बेचैन कर जाती

करवटें बेतरतीब सी
आज मौका दे रही हैं छत की और निहारने का
कोई पुराना सा गीत गाने का
घडी की टिक  टिक  के साथ ताल मिलाने का
और वो सबकुछ सोचने का जो थकान भरी नींद अक्सर सोचने नहीं देती

करवटें बेतरतीब सी
आज कह रही है
निकल चलो एसी कमरे से बाहर
खुले आसमान के नीचे चांदनी तले बैठते हैं
अपनी परछाइयों से बातें करते हैं
और सोचते हैं की जिंदगी में बहुत कुछ है
कमाने, खाने और जिंदा रहने की चाह के अलावा

10 comments:

  1. ख्यालों को आने का मौका तो दिया करवटों ने......
    नींद फिर कभी आ जायेगी...........

    अनु

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  2. करवटें बेतरतीब सी
    आज कह रही है
    निकल चलो एसी कमरे से बाहर
    खुले आसमान के नीचे चांदनी तले बैठते हैं
    अपनी परछाइयों से बातें करते हैं
    और सोचते हैं की जिंदगी में बहुत कुछ है
    कमाने, खाने और जिंदा रहने की चाह के अलावा... जीने के लिए , खुली हवा ज़रूरी है

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  3. खुले आसमां के नीचे न करवटों की जगह न घुटन ... और परछाई सी साथी ...

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