सुकून तुझे तलाशते तलाशते
सुकून तुझे तलाशते तलाशते
बीती जा रही है उम्र
पर तुम हमेशा पहुँच से बाहर
तुम्हे पाने की चाहत में
बदलती गयी जीने का ढंग
रख दी हसरतें एक कोने में
निभाती गयी हर हालात
संभालती रही हर मुश्किल
और फिर भी मुस्कुराना नहीं छोड़ा
कुछ न सही तो कम से कम
मेरी मुस्कान देखने के लिए ही
चले आओ मेरे पास
जब आओगे तो शायद
मेरी मुस्कराहट देख कर
तुम्हे भी कुछ सुकून मिल जाये
तब तुम देखोगे दर्द में डूबी हुई
मुस्कान भी खूबसूरत होती है
मोनालिसा की पेंटिंग की तरह
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ लाजवाब प्रस्तुति बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
उत्कृष्ट लेखन !!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर व भावपूर्ण रचना है बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteखूबसूरत....
अनु
ReplyDeleteनिभाती गयी हर हालात
संभालती रही हर मुश्किल
और फिर भी मुस्कुराना नहीं छोड़ा
यही सच्ची जीवटता है ..सुन्दर रचना.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 30 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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