Tuesday, February 21, 2012


चाँद तारों की नहीं
न आसमां की चाह है

मै ज़मी की और
ज़मी से ही जुडी हर राह है

देखने वाले मुझे कहते हैं
एक ठहरी नदी

मै समुन्दर वो
नहीं जिसकी कोई भी थाह है

7 comments:

  1. ... मै समुन्दर वो
    नहीं जिसकी कोई भी थाह है!
    खूब कही!

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  2. वाह ...बहुत खूब ।

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  3. kabhee naa rukne waalee
    ik bahtee huyee hawaa hoon?

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. Vaah ... Gazab ke ashaar hain ... Sach hai Samundr ki koi thaah nahi ....

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