ठहर जाने दो लम्हों को
बिखर जाने दो कुछ मोती
तुम्हारी याद के चादर तले
ये रात है सोती
सितारे आ टपकते हैं
मुझे तन्हा जो पाते हैं
ये जुगनू रात भर
मेरी तरह ही टिमटिमाते हैं
चुराने आ गए हैं फिर
मेरी आँखों के सब सपने
अँधेरे मेरे कानों में
बहुत कुछ बुदबुदाते है
पुराने से पिटारे कुछ
अभी भी अधखुले से हैं
कही रेशम से आंचल के
सितारे झिलमिलाते हैं
यूँ हम तो चल ही पड़ते हैं
वो जब आवाज़ देते हैं
लो अब हम भी उन्हें
आवाज़ देकर आज़माते हैं
शिकायत वो भला हमसे
करें किस बात की बोलो
जो न तो याद करते हैं
न हमको याद आते हैं
मुसाफिर जिस गली के हम रहे
माहों को. सालों को
कभी उनके परिंदे
हम तलक भी उड़ के आते हैं
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बहुत सुन्दर लिखा है आपने, शुभकानाएं !!
ReplyDeleteचुराने आ गए हैं फिर
ReplyDeleteमेरी आँखों के सब सपने
अँधेरे मेरे कानों में
बहुत कुछ बुदबुदाते है
पुराने से पिटारे कुछ
अभी भी अधखुले से हैं
कही रेशम से आंचल के
सितारे झिलमिलाते हैं
Shaandaar !
यूँ हम तो चल ही पड़ते हैं
ReplyDeleteवो जब आवाज़ देते हैं
लो अब हम भी उन्हें
आवाज़ देकर आज़माते हैं... बहुत बढ़िया
पुराने से पिटारे कुछ
ReplyDeleteअभी भी अधखुले से हैं
कही रेशम से आंचल के
सितारे झिलमिलाते हैं
वाह ... बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास
वाह ...बहुत ही अनुपम भाव समेटे हुए उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह...वाह....
ReplyDeleteचुराने आ गए हैं फिर
मेरी आँखों के सब सपने
अँधेरे मेरे कानों में
बहुत कुछ बुदबुदाते है
बहुत खूब रंजना जी...
लाजवाब!!!
अनु
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया....बहुत बेहतरीन प्रस्तुति...!
ReplyDeleteउस अत्तीत की धूमिल यादें जब प्रकाश इतना देती हैं ,
ReplyDeleteअन्त्स्मन की सारी बातें पंक्तियों में कह देती हैं
ब्यथा भंगिमा की है रंजना भाउक मन को कर देती है
नई लहर को लेकर नया कलेवर दे देती है ..
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति , यादें ही तो हैं जो जोड़े रखती हैं :)
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