ओ सावन
ज़्यादा झूम कर मत बरसना
कुछ छतें कमज़ोर हैं
टूट सकती हैं.....
नयी बनी सड़कों के
किनारे भी कटने लगे हैं,
शादी का तम्बू गाड़ने के लिये
किया गया गड्ढा
अब और बड़ा हो गया है.…
पड़ोस वाले बाबा की
छतरी में छेद हो गया है
फिर भी वो बारिश को
बेवकूफ बनाने के लिए
निकल पड़ते हैं उसे लेकर.…
दो दिन तेज़ बारिश हो जाये
तो छतें इतना टपकती हैं
की outdoor और indoor का
फर्क खत्म हो जाता है.…
और भी है बहुत कुछ कहने को
पर बातों की फहरिस्त
कहाँ खत्म होने वाली .…
इसलिए निचोड़ कर दुपट्टा
फैला दिया है पंखे के नीचे
और अदरख वाली चाय की
चुस्कियों के साथ
देख रही हूँ फर्श पर थिरकती
बूंदो की जुगलबंदी
- रंजना डीन
sawan ka chitran yathharthh ke daratal par ati rochak laga.
ReplyDeleteबारिश का मंजर आँखों से सामने खड़ा कर दिया ... लाजवाब ....
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeletenice
ReplyDeletewahhh
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