Thursday, April 23, 2015




याद तेरी फिर भटक कर मेरे दरवाज़े खड़ी

शक्ल है मायूस, आँखों में है आंसू की झड़ी 

थाम के बाँहें जो उसकी, मैंने बैठाया उसे 

गोद में सर रख के मेरे वो फफक कर रो पड़ी 

- रंजना डीन

3 comments:

  1. यादों का काम ही क्या ... कभी रोना तो कभी हसाना ...

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.04.2015) को "आँखों की भाषा" (चर्चा अंक-1955)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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  3. आपने बहुत ही शानदार पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट के लिए Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.

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