Saturday, November 14, 2009

मरने की ख्वाहिशों में जीने लगे है हम…
जख्मों को चुपके चुपके सीने लगे है हम…
जब थक गए हम खुद के अश्कों को पोछकर…
गैरों के अश्क अब तो पीने लगे है हम.

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