Thursday, October 8, 2009

कभी देखा है

कभी दिल के दरख्तों पर उगे काँटों को देखा है?
कभी बिन चाँद तारों की सियाह रातों को देखा है
कभी देखा है आंसू किस कदर खामोश होते है?
कभी दिल में छुपे मासूम जज्बातों को देखा है?
कभी देखा है कैसे जिंदगी दमन छुडाती है...
कभी बरसे बिना जाते हुए सावन को देखा है?
कभी देखा है उसके पैर में छाले पड़े है क्यों...
कभी सर्दी में खस्ताहाल बेचारों को देखा है?
कभी रोते हुए चेहरों को दो पल की हँसी दी है...
कभी गैरों के ज़ख्मों पर मरहम लगा कर देखा है?

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