Friday, August 14, 2009

कभी खुल कर जिंदगी से हाथ मिलाना

कभी खुल कर जिंदगी से हाथ मिलाना
वो जैसी है उसे वैसे ही अपनाना
मत टटोलना उसके अन्दर की छुपी बुराइयों को
उसके बेसुरेपन को सुर में गुनगुनाना

उसकी कड़वाहट में कुछ मिठास घोलना
उसकी बाँहों को थाम आहिस्ता से डोलना
उसकी आँखों में आँखे डालकर उसे समझना
जब भी बोलना कुछ अपना सा बोलना

देखना धीरे धीरे जिंदगी सुर में गुनगुनायेगी
हर बिगड़ी हुई बात अपनेआप बन जायेगी
तुम सोचते रह जाओगे ये हुआ कैसे??
और वो कोने में खड़ी तुम्हे देख कर मुस्कुराएगी

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