Friday, January 1, 2010

मै कवि, मै कलाकार...

मै कवि, मै कलाकार...
सपनो की दुनिया से गहरा सरोकार.
जब असली दुनिया से भर जाता दिल
सज जाती है सपनो की महफ़िल.
चाँद से होती है गुफ्तगू..
बादलों पर बैठ कर हो जाती हूँ उड़न छु
हवा के संग हिलते हुए फूलों पर डोलती हूँ ...
नर्म हरे पत्तों की चुनरिया ओढती हूँ...
ओस की मोतियों के जब पहनती हूँ जेवर,
किसी राजकुमारी से कम नहीं होते तब मेरे तेवर.
चाँद से तो मेरा है बरसों का याराना ...
मेरे हर राज़ का है उसके पास खज़ाना .
घास पर टूटी पड़ी पत्तियों के नीचे
मै अक्सर अपनी आँखों को मीचे
करती हूँ गुनगुनी धुप में आराम
पूछना कभी उनको याद है अभी भी मेरा नाम
आसमान पर बैठ कर देखती हूँ पूरी दुनिया
वो बूढी सी दादी, वो नन्ही सी मुनिया
वो छोटा मोनू जिसके लिए हर वो चीज़ लड्डू है जो गोल है
वो संजू किसके लिए प्यार सबसे अनमोल है.
मेरे लिए उतना है आसान आसमान के तारें तोडना...
जितना ज़मीन पर बैठ कर अपनी टूटी चप्पल जोड़ना.
ये सपनो की दुनिया देती है तनाव से आराम..
और आसान हो जाते है कुछ मुश्किल से काम.

4 comments:

  1. ये सपनो की दुनिया देती है तनाव से आराम..
    और आसान हो जाते है कुछ मुश्किल से काम.

    -बिल्कुल सही कहा. एक उम्दा रचना.

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  2. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई

    आसमान पर बैठ कर देखती हूँ पूरी दुनिया
    वो बूढी सी दादी, वो नन्ही सी मुनिया
    वो छोटा मोनू जिसके लिए हर वो चीज़ लड्डू है जो गोल है
    वो संजू किसके लिए प्यार सबसे अनमोल है.

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  3. घास पर टूटी पड़ी पत्तियों के नीचे
    मै अक्सर अपनी आँखों को मीचे
    करती हूँ गुनगुनी धुप में आराम
    पूछना कभी उनको याद है अभी भी मेरा नाम ...

    वाह . क्या बात कही है ...... मन की लंबी उड़ान ....... प्यारी सी रचना दिल को छू गयी ..........

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