Tuesday, January 5, 2010

ठिठुरता दिन

कडकती ठण्ड में...
थरथराती सांसे लिए...
ठण्ड से बचने के लिए...
खुद को खुद में छुपाने की कोशिश करती हुई,
आना ही पड़ा ऑफिस।

काश कुछ छुट्टियाँ और मिल जाती...
और थोडा वक़्त और बिता लेती घर पर.
परिवार के साथ रजाई में बैठकर...
गर्म चाय की चुस्कियां लेते हुए...
छुट्टियाँ बिताने से अच्छा क्या हो सकता है।

लेकिन हाय ये प्राइवेट नौकरी,
जान जाये पर काम न जाये।

आज एक सहकर्मी बोला...
कोई आज बहुत प्रशंशा कर रहा था हमारे विभाग की,
लेकिन निदेशक कुछ नहीं बोले...
मै मुस्कुरा कर बोली...
समझदार बोस वही होता है,
जो पेड़ पर उगते फल नहीं गिनता...
लेकिन हर टूटते पत्ते का हिसाब रखता है।

सभी सहकर्मी मुस्कुरा दिए...
फिर लग गए सब अपने अपने काम में,
ऑफिस की वही डिप डिप चाय की चुस्कियां लेते हुए।

सहसा देखा एक सहकर्मी ने...
सबके लिए कही से अदरक वाली चाय मंगाई,
सब के सब खुश हो उठे...
वाह बहुत बढ़िया किया ये.
मै बोली ऐसा लगा रहा है जैसे किसी ने...
कुछ गरीब लोगो को कम्बल बाँट दिए हो...
ठण्ड से बचने के लिए।

और ज़ोरदार ठहाकों के साथ...
फिर से ऑफिस में...
एक ठिठुरता दिन ख़तम.

5 comments:

  1. ऑफिस में ठिठुरते बिताये एक दिन और प्राइवेट नौकरी की मजबूरी सब कुछ तो गिना गयी एक ही पोस्ट में ...!!

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  2. सही बात है इतनी ठंड मे अदरक वाली चाय किसी तोहफे से कम नहीं सुन्दर रचना शुभकामनायें

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  3. ऑफीस में बिताया एक दिन .. ठंडी कड़क अद्रक की चाय ........... वाह दिल्ली में बीते पुराने दिनों को याद करा दी आपने .... बहुत अच्छी लगी ये रचना ...........आपको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ........

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  4. acchee rachana.pratidin sardee me aapko ginger tea mile isee dua ke sath .

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