कोहरे से भरा सवेरा है
हर शय पर धुंध का डेरा है
हर पत्ती सहमी सिमटी है
और ख़ामोशी का पहरा है
सांसो से धुआं निकलता है
अलाव सुबह से जलता है
गर्मी की चाहत लिए हुए
हर जिस्म ठण्ड से गलता है
सूरज तो ऐसा छुपा हुआ
न उगता है न ढलता है
सड़कों पर सोते लोगों में
एक घर का सपना पलता है
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बहुत अच्छे , लयबद्धता के साथ कोहरे को महसूस कराती कविता ( हम तो खैर पहाड़ पर बैठे धूप का आनंद उठा रहे हैं ),
ReplyDeleteहर पत्ती सहमी सिमटी है
और ख़ामोशी का पहरा है
सूरज तो ऐसा छुपा हुआ
न उगता है न ढलता है
ये पंक्तियाँ पसंद आईं |
bahut acchee saamyik kavita .
ReplyDeleteसूरज तो ऐसा छुपा हुआ
ReplyDeleteन उगता है न ढलता है
सड़कों पर सोते लोगों में
एक घर का सपना पलता है
सच है जब सर्दी इतनी तेज़ हो . सूरज छिपा ही तो अपने घर का सपना तो आता ही है ......
Ranjana ji
ReplyDeleteSanson se Duwan nikalta hai
Alaw subhah se Jalta hai
garmi ki chahat liye huye
har jism thand se galta hai
Bahoot khoob
सांसो से धुआं निकलता है
ReplyDeleteअलाव सुबह से जलता है
गर्मी की चाहत लिए हुए
हर जिस्म ठण्ड से गलता है
Ranjana ji Bahoot hi
Sunder ehsah likhe hain apne
SADKO PER SOTE LOGON ME EK GHAR KA SAPNA PALTA HAI....VERY GOOD
ReplyDeleteसूरज तो ऐसा छुपा हुआ
ReplyDeleteन उगता है न ढलता है
सड़कों पर सोते लोगों में
एक घर का सपना पलता है
सच है. सुबह ऑफिस जाते समय फूटपाथ पर बने घरोंदो को देखा कर यह विचार कई बार मन में आता है. सुन्दर रचना है. बधाइयाँ.
Hi Ranjanaji…Aapki kavita "Aapke Ke Jane Ke Baad" sachmuch me dil ki gaharai se likhi hui rachana hai. Jaishankar Prasadji ne tabhi apani Kamayani me kaha hai pahala kavi vahi raha hoga jisaki hriday ki gaharai se ek aah si nikali hogi aur vahi aah ek anjan kavita ban kar bah nikali hogi. Aapki ye poem is baat ka pratyaksh example hai…
ReplyDeleteWonderfully written Ranjana. Have you published them? I got this link from one of the orkut pages and you seem to be a College of arts LKO pass-out, are you? Because so am I.
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