कितनी उलझन और बवाल
एक ख़तम तो नया सवाल.
नए साल पर मांग उधारी
मचा रहे है लोग धमाल
महगाई की झेलो मार
मचा हुआ है हाहाकार.
जेब हुई जाती है हल्की
और खर्चे है अपरम्पार
इंसानों का लगा बाज़ार
रिश्तों में चलता व्यापार
घटिया से नोवेल के सारे
लगते है घटिया किरदार .
टूटी चप्पल जोड़ रहे
नाते रिश्ते तोड़ रहे
अपने दुःख की नहीं खबर
गैर के सुख पे आँख धरे
पैसों की मारा मारी
इसे भरा तो वो खाली
फूल पौध से काम चले न
नोट उगाओ ओ माली
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
टूटी चप्पल जोड़ रहे
ReplyDeleteनाते रिश्ते तोड़ रहे
अपने दुःख की नहीं खबर
गैर के सुख पे आँख धरे...
सुंदर लाइनें.आभार.
इंसानों का लगा बाज़ार
ReplyDeleteरिश्तों में चलता व्यापार
घटिया से नोवेल के सारे
लगते है घटिया किरदार .
नये साल के स्वागत गान में आपने तो देश की सच्चाई कह डाली एक से एक बढ़कर सच ..बहुत बढ़िया कविता..बधाई!!
बहुत बढ़िया सामयिक रचना है।बधाई।
ReplyDeleteइंसानों का लगा बाज़ार
रिश्तों में चलता व्यापार
घटिया से नोवेल के सारे
लगते है घटिया किरदार .
क्या करें रंजना जी,
ReplyDeleteहमारा तो काम ही है सवाल खड़ा करना। हा हा।
बहुत संजीदा बात कही आपने।
कृपया वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में लोगों को आसानी हॊगी। धन्यवाद।
जज्बातों को खूबसूरती से पिरोया है आपने। कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से उम्दा रचना।
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है। समय हो तो पढ़ें-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
जबरदस्त!!
ReplyDelete’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
Have gone through your poems and have been moved by the depth of your thoughts which do not to be mere words but appear to have been felt( dil se). I would like you to contribute to the e magazine being published by ASCO,if only to make people realise the emotional depth and the relative ease with you are able to link it up with real time relations and issues.
ReplyDeleteShall look forward to more such gems from you.
Anil
इंसानों का लगा बाज़ार
ReplyDeleteरिश्तों में चलता व्यापार
घटिया से नोवेल के सारे
लगते है घटिया किरदार ...
शशक्त ........ सत्य की अभिव्यक्ति है ये रचना ....... बहुत खूब ........