Wednesday, January 13, 2010

मेरी कुछ बातें क्यों अक्सर....
कुछ की कुछ हो जाती है?
कहती हूँ कुछ और...
समझ में लोगो के कुछ आती हैं.

नहीं रंग रोगन से....
रंगना आता मुझको बातों को..
हो जाता नाराज़ कोई तो...
नींद न आती रातों को.

सोच रही हूँ अब बातों को...
न बोलूं न खोलूंगी,
फिर कोई नाराज़ न होगा...
मै सुकून से सो लूगी.

2 comments:

  1. सोच रही हूँ अब बातों को...
    न बोलूं न खोलूंगी,
    फिर कोई नाराज़ न होगा...
    मै सुकून से सो लूगी.

    --काश!! ऐसे ही सुकून मिल पाता..लेकिन कहाँ!!
    अच्छी तरह मनोभावों को उकेरा है..

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  2. APNE DIL KO BAANDH KAR RAKHNA JAROORI NAHI .... JO NAARAAZ HOTE HAIN VO MAAN BHI JAATE HAIN ... ACCHHAA LIKHA HAI ...

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