Wednesday, December 30, 2009

कैसे रिश्ते, कैसे नाते...

कैसे रिश्ते, कैसे नाते...
स्वार्थ में उलझे कच्चे धागे.
सामाजिक जन झेल रहे है...
कोई इनसे कैसे भागे?

जहाँ फायदा कुछ दिखता है...
वहीँ नया रिश्ता उगता है,
लालच और बनावट जीती
स्नेह भरा सच अब झुकता है।

चेहरे पर नकली मुस्काने...
मन में नीम करेले पाले,
फूल दिखा कर चुभा रहे है...
तीखे जहरीले से भाले।

टूट रहे वो मन के बंधन,
स्नेह भरे वो मीठे प्याले...
बूढी जर्जर सी कोठी के..
लगते है अब चिपके जाले.

9 comments:

  1. बहुत बढ़िया रचना है। सामयिक रचना है।बहुत सुन्दर लिखा है....यह एक कड़वा सच है....

    जहाँ फायदा कुछ दिखता है...
    वहीँ नया रिश्ता उगता है,
    लालच और बनावट जीती
    स्नेह भरा सच अब झुकता है।

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  2. "टूट रहे वो मन के बंधन,
    स्नेह भरे वो मीठे प्याले...
    बूढी जर्जर सी कोठी के..
    लगते है अब चिपके जाले."

    सही कहा आपने । कुछ ऐसी ग्रंथियाँ भर गयीं हैं मन में कि असली बन्धन खत्म हो गये हैं स्नेह के, अपनत्व के !
    सार्थक रचना । आभार ।

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  3. सादर वन्दे
    लेखनी की प्यास यूँ बुझेगी कैसे
    जब तलक जीवन की सच्चाई दिखेगी ऐसे
    रत्नेश त्रिपाठी

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  4. बहुत बढ़िया रचना!!



    यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

    हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

    नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    आपका साधुवाद!!

    नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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  5. टूट रहे वो मन के बंधन,
    स्नेह भरे वो मीठे प्याले...
    बूढी जर्जर सी कोठी के..
    लगते है अब चिपके जाले.

    सुंदर भाव...बढ़िया रचना..बधाई!!!!

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  6. आज की सच्चाई, बहुत खूब, लाजबाब ! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !

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  7. जहाँ फायदा कुछ दिखता है...
    वहीँ नया रिश्ता उगता है,
    लालच और बनावट जीती
    स्नेह भरा सच अब झुकता है...

    कुछ आज के रिश्तों को बेनकाब करती अच्छी रचना .....
    आपको और आपके पूरे परिवार को नये साल की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ........

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  8. बदलते परिवेश की सच्चाई

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