तुमने पंख दिए और कहा उड़ो वहां तक
जहाँ पंहुच कर कोई छोर न दिखे
जहाँ पंहुच कर अंत का भी अंत हो जाये
मै उड़ी...
उस ऊंचाई को देख पहले हिचकिचाई
फिर उड़ चली इस विश्वास के साथ
की तुम साथ हो
जब डगमगाई संभाला तुमने
फिर एक दिन तुम डगमगाए
या शायद तुम डगमगाए नहीं
वो तुम्हारा उड़ने का तरीका था
और तुम्हे उस डगमगाहट से सँभालने में
मै भी डगमगा गयी
इतनी ऊंचाई पर पहुँच कर डगमगाने से
शरमाई, घबरायी सी मै
तुमसे नज़र मिलाने से कतराती हुई
उड़ चली दूर
और बैठ कर एक पेड़ की ओट में सोचने लगी
मै क्यों भागी तुमसे नज़रें चुराती हुई?
तुम तो सब जानते थे
मेरी उड़ान, मेरी थकान के बारे में
फिर मेरा डर मेरी घबराहट तुम्हे समझ क्यों नहीं आई?
क्यों तुमने कहा...
ठीक है बैठी रहो उस पेड़ की ओट में
अगर तुम डरती हो डगमगाने से
साथी होने के नाते
कोई ऐसा रास्ता भी तो बता सकते थे
जिसपर चलते हुए मुझे डगमगाना न पड़े
लेकिन अब उस डगमगाहट ने सिखा दिया मुझे
लड़खड़ा कर संभालना
बिना डर के उड़ना
अब मेरी उड़ान तुमसे ऊपर है
और मै जानती हु जब तुम ऊपर देखते हो
तो शर्मिंदा से सोचते हो
इतनी जल्दी क्यों की तुमने निर्णय लेने में.
लेकिन पछताओ मत
मै आज भी तुम्हारे साथ हूँ
तुम्हारी उड़ान और डगमगाहट में
क्यों की मेरी आदत है ज़मीन की और देखते हुए चलना
इसलिए नहीं की उड़ने से ज्यादा मुझे चलना पसंद है
बल्कि इसलिए की नीचे देखने पर तुम दिखाई देते हो.
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बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteलेकिन अब उस डगमगाहट ने सिखा दिया मुझे
ReplyDeleteलड़खड़ा कर संभालना
बिना डर के उड़ना
बहुत खूबसूरत लाइन..
रस्ते बड़े कठिन हैं
चलना संभल-संभल के..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteलेकिन पछताओ मत
मै आज भी तुम्हारे साथ हूँ
तुम्हारी उड़ान और डगमगाहट में
क्यों की मेरी आदत है ज़मीन की और देखते हुए चलना
इसलिए नहीं की उड़ने से ज्यादा मुझे चलना पसंद है
बल्कि इसलिए की नीचे देखने पर तुम दिखाई देते हो.
वाह!!
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यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
कविता के अंत की उदात्तता ने प्रभावित किया | आभार |
ReplyDeleteeak hi lafz juban pe aya...umda!
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