वो भी औरत और तुम भी...
उसकी आँखे भी कजरारी और तुम्हारी भी
उसकी पलकें भी झुकी हुई और तुम्हारी भी
उसका चेहरा ढका हुआ सिर्फ आँखे दिख रही
तुम्हारा चेहरा भी ढका हुआ सिर्फ आँखे दिख रही
तुम्हारा चेहरा छुपा है लेपटोप के पीछे
जिसमे डाटा केबल लगाये हुए....
इन्टरनेट पर तुम जुड़ रही हो सारी दुनिया से,
लेकिन उसका चेहरा छुपा है काले से नकाब के पीछे
जिसमे सिमट कर वो खुद को....
दुनिया से छुपाने की कोशिश कर रही है.
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वाह क्या बात कही है .... सब कुछ समान होते हुवे भी कितना जुदा ..........
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति-आभार
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफ़ि्केशन हटा ले। धन्यवाद
अच्छा लिखा है आपने शुक्रिया
ReplyDeletetrying to combine two ends in one...Well versed!!
ReplyDeleteSmiles :)
Prashant
बहुत समग्रता से कही गयी बात । आपने दूसरी ओर भी नजर फिरा ली । आभार ।
ReplyDeletebahut acchi rachna
ReplyDeletebadhai swikaren
bahut dil ko choo jane walee kavita.
ReplyDeletesamaj ne kitne bandhan jod diye hai jeevan se sath hee dharm aur maryada ka vasta diya jata hai. aabhar!
विसंगती को आपने बखूबी उकेरा है. फर्क तो यहाँ है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
नसीब अपना अपना .
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