लम्हों को समेटना आसान नहीं...
चलते फिरते , सोते जागते समेटती रहती हूँ इन्हें
लेकिन बिखर ही जाते हैं.
कभी तकिये के सिरहाने छिपाती हूँ इन्हें,
कभी बांध लेती हूँ दुपट्टे के पल्लू में,
कभी छिपाती हूँ मन के कोने में...
तो कभी यूँ ही बिखेर देती हूँ ये सोचकर,
की फिर से समेट लूंगी इन्हें कुछ और नए लम्हों के साथ.
कुछ लम्हे बहुत हसीन है,
गुदगुदा जाते है मन को.
कुछ दर्द देते है चुभ से जाते है,
कुछ लम्हे हँसाते हैं,
और कुछ आँखों से फिसल कर...
गालों को नम कर जाते है.
तुम भी समेटना इन लम्हों को,
बड़े प्यार से, करीने से सजाना इन्हें,
क्योंकि जिंदगी के उन पलों में जब कोई साथ नहीं होता
ये लम्हे बहुत काम आते है.
तुम्हारे सर को अपने कन्धों पर रखकर
प्यार से सहलातें है,
ये एहसास करते है...
की तुम दुनिया में अकेले नहीं.
कभी बुलाकर देखना इन्हें...
ये समय की परवाह किये बगैर,
दौड़ते हुए आयेंगे.
तुम्हारी बाँहों को थाम कर,
तुम्हारे दिल का हाल सुनेगे,
कुछ अपनी भी सुनाएँगे.
और मुस्कुरा कर कहेंगे
Don’t worry be happy यार
मै हमेशा तुम्हारे साथ हूँ...
हर पल एक नए लम्हे के साथ.
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अच्छे भाव की रचना। किसी ने कहा है कि-
ReplyDeleteअक्ल तय करती है लम्हों का सफर सदियों में।
इश्क तय करता है लम्हों में जमाने कितने।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बढ़ियां.....
ReplyDeleteवाकई लम्हे समेटे नहीं सिमटती
ReplyDeleteबेहतरीन भाव
बहुत सुंदर.........
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार और शिल्प का सुंदर समन्वय रचनात्मकता को प्रखर बना रहा है । मैने भी अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है। समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
ReplyDeletehttp://drashokpriyaranjan.blogspot.com
वैचारिक संदर्भों पर केंद्रित लेख-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन-मेरे इस ब्लाग पर पढ़ा जा सकता है-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बेहद खूबसूरत । लम्हों का सौन्दर्य विराट है जो फैलता जाता है जिन्दगी के विस्तार में । आभार ।
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