हम मिले वैसे ही जैसे मिलते है आज के युग के मित्र
ऑनलाइन वेबसाइट पर
न जाने तुम क्या खोजते हुए पहुंचे गए मेरी प्रोफाइल तक
और मंत्रमुग्ध से मान बैठे मुझे अपनी रशियन नोवेल की नायिका सा
जो बचपन से तुम्हारे मन में सेंध लगाये बैठी थी
तुम भी कम नहीं थे किसी से
सांवले सलोने, मोहक मुस्कान लिए
अपने शब्दों के तिलिस्म में....
किसी को भी कैद करने की क्षमता रखने वाले
जब भी तुम्हे सुनती सोचती कहाँ से आये हो तुम
इतना स्नेह किसी में कैसे हो सकता है?
कोई कैसे किसी को इतना चाह सकता है?
क्या मै इतने स्नेह के योग्य हूँ?
नहीं इतना समर्पण, इतना स्नेह अब बचा ही कहाँ मुझमे
जो था सब उड़ेल दिया घर परिवार में
ऐसा नहीं की तुम्हे सोचती नहीं
तुम्हारे लिए कोई भावना नहीं मन में
लेकिन तुम्हारे आगे सदा खुद को बौना पाया
इसलिए धीरे धीरे खुद को दूर कर दिया तुमसे
तुमसे कहा स्नेह नहीं मित्रता ही सही
पर तुम ठहरे आर या पार, स्नेह के सिवा कुछ नहीं
तुम्हारा स्नेह अब क्रोध बन चुका है
हटा दिया है तुमने मुझे अपनी प्रोफाइल, मेलबोक्स और स्क्रैप से
लकिन फिर भी मै चाहती हूँ की जब मै ऑनलाइन रहूँ
तो तुम्हारे नाम की वो ग्रीन लाइट जलती रहे
और मुझे ये आभास होता रहे की मेरा एक परम मित्र मेरे साथ है...:)
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लकिन फिर भी मै चाहती हूँ की जब मै ऑनलाइन रहूँ
ReplyDelete--
आनलाईन जो दिखता है कभी कभी आनलाईन नहीं होता है.
बिना लाईन की लाईने जब जुडती हैं तो आनलाईन हो जाती हैं
नया प्रयोग है आपकी कविता में बहुत ही सुन्दर
बेहतरीन
ब्लॉगरी का अमर प्रेम...
ReplyDeleteजय हिंद...
बहुत अनुभूत करके लिखती हैं आप ! सुन्दर लगी यह प्रयुक्ति । आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है। बधाई।
ReplyDeletenow looks a proper blog !!
ReplyDeletefull with wonders!
Congrats mam!!
लकिन फिर भी मै चाहती हूँ की जब मै ऑनलाइन रहूँ
ReplyDeleteतो तुम्हारे नाम की वो ग्रीन लाइट जलती रहे
और मुझे ये आभास होता रहे की मेरा एक परम मित्र मेरे साथ है...
VAAH KAMAL KI RACHNA ... AADHUNIK KAVITA ... EK NAYA PRAYOG JO BAHUT HI LAJWAAB HAI ... BHAAVNAAYEN AUR HREDAY HEEN COMPUTER KA ADHBUDH MISHRAN .......