Sunday, December 27, 2009

गुम हुए तुम फिर भी कोई नूर सा फैला गए..
आस्मां से कुछ फ़रिश्ते इस ज़मीं पर आ गए...
तुम तो जा बैठे हो छुपकर जाने किसकी ओट में...
नम सा मौसम करके कितनी बारिशें बरसा गए.

याद तुमको हम करें ऐसा कभी होता नहीं...
भूलने की कोशिशों में यादों पर तुम छा गए.
खूबसूरत चेहरे न मुझको लुभा पाए कभी...
रूह जब देखी तुम्हारी तुम तभी से भा गए।

जब तलक थे साथ तुम खुशियों के मौसम थे तमाम...
साथ जबसे तुम नहीं, गम आये आकर न गए.
लेके इतना नेक दिल किसने कहा था आइये...
आये थे तो क्यों गए हमपर सितम क्यों ढा गए?

7 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ लाज़वाब कविता का प्रस्तुतिकरण..

    बढ़िया लगा तीनों मुक्तक दिल छू लिए..शानदार रचना..बधाई

    ReplyDelete
  2. याद तुमको हम करें ऐसा कभी होता नहीं...
    भूलने की कोशिशों में यादों पर तुम छा गए.
    खूबसूरत चेहरे न मुझको लुभा पाए कभी...
    रूह जब देखी तुम्हारी तुम तभी से भा गए।
    bahut sunder abhivyakti .

    ReplyDelete
  3. सुन्दर छंदबद्ध किया है, बेहतरीन!!

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर व बेहतरीन रचना है।बधाई।

    ReplyDelete
  5. मुझे बड़ी प्यारी लगी ये रचना..!

    ReplyDelete
  6. "तुम तो जा बैठे हो छुपकर जाने किसकी ओट में...
    नम सा मौसम करके कितनी बारिशें बरसा गए."

    इन पंक्तियों पर कुछ कहने की ताब मुझमें नहीं । बेहतरीन पंक्तियाँ । आभार ।

    ReplyDelete
  7. kya baat hai...bahut umda..apke blog per aaj pehli bar aya aur apki sari kavitayen padhker dil khush ho gaya...kya andaaz hai..!

    ReplyDelete