Tuesday, January 26, 2010

शहीद

अंग्रेजों को भगाने का कारण
क्या देश को आजाद कराना था?
या उनके हाथ से देश छीन कर...
दो टुकड़ों में बाँट कर खाना था?
दो टुकड़ों को बाँट कर नेता बना दिया,
शहीदों को देश का विजेता बना दिया.
जो बचे जीवित उन्हें मेडल थमा दिए
जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए
कुछ रुपयों के पैडल थमा दिए.
और वो रूपये भी इतने कम की ज़िन्दगी क्या...
मौत का बोझ भी नहीं उठा पाएंगे,
जितने में दो रोटियां जुटाना मुश्किल था...
उतने में वो कफ़न कहा से लायेंगे?

5 comments:

  1. कल्पना तो स्वतंत्रता की ही थी ......... पर आज शायद ये कहीं न कहीं सच भी हो रहा है ......... इस सच को बदलना होगा ....

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  2. या उनके हाथ से देश छीन कर...
    दो टुकड़ों में बाँट कर खाना था?
    दो टुकड़ों को बाँट कर नेता बना दिया,
    शहीदों को देश का विजेता बना दिया.
    जो बचे जीवित उन्हें मेडल थमा दिए
    जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए
    कुछ रुपयों के पैडल थमा दिए.

    कड़वा सच , बहुत सुन्दर रचना !

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  3. "अंग्रेजों को भगाने का कारण
    क्या देश को आजाद कराना था?
    या उनके हाथ से देश छीन कर...
    दो टुकड़ों में बाँट कर खाना था?"
    हमारी सोच में खोट भी हो सकता है लेकिन शहीदों के साथ जो हुआ और हो रहा है उसके लिए देश के कर्णधारों को शर्मशार होना चाहिए आपकी सोच जायज है.

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  4. Sahi samay pe sahi topic ka selection..dheron badhaiyan. Sach me jinhone hame aazadi dene ke liye apana sab kuch choda, kya ham vyakatigat roop se unhe kuch de pate hai, kya ham sabhi ka ye farz nahi, sahidon ko kisi bhent ki zarurat nahi ek hridaya se sachhi shradhanjali to chahiye baas itani sa bhi ham nahi kar sakate..

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