Thursday, December 3, 2009

नींद कही सोयी है छुप कर...

नींद कही सोयी है छुप कर...
और मै अबतक जाग रही हूँ,
क्या है बेचैनी का कारण...
और मै किससे भाग रही हूँ.

काम बहुत से करने है पर...
मन न जाने कहा टंगा है,
सोच सोच कर थकी हुई हूँ...
किस रंग में ये आज रंगा है.

चुपके से मै लेम्प जलाकर...
लिखे जा रही मन की बातें,
सब जग सोया बस मै जागूं...
कैसी सन्नाटी सी रातें.

सोच रही हूँ कबतक जागूं..
अब सोने की कोशिश कर लूँ,
बिटिया सोयी बड़े चैन से...
अब उसको बाँहों में भर लूँ.

8 comments:

  1. सोच रही हूँ कबतक जागूं..
    अब सोने की कोशिश कर लूँ,
    बिटिया सोयी बड़े चैन से...
    अब उसको बाँहों में भर लूँ.....

    bahut sunder panktiyon ke saath ....bahut sunder kavita....


    मेरी रचनाएँ !!!!!!!!!

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  2. ब्‍लागरों के साथ यही समस्‍या है । लेकिन कविता अच्‍छी है ।

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  3. बिटिया सोयी बड़े चैन से...
    अब उसको बाँहों में भर लूँ....
    सबसे महत्वपूर्ण कार्य है ये ...इसमें कोताही ना करें ...
    कविता बहुत अच्छी है ...सीधी सच्ची दिल से निकली ...!!

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  4. वाणी जी ने कहा न सबसे महत्वपूर्ण कार्य ! करें ही ! बस वहीं आपके सारी दुविधाओं का अंत है । आलिंगन की उष्णता, ममत्व का राग - नींद आ ही जायेगी ।

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  5. बिटिया सोयी बड़े चैन से...
    अब उसको बाँहों में भर लूँ...

    सुंदर रचना है .......... मधुर एहसास लिए ........

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  6. Sab jag soya bas mai jagun....

    don't worry be happy....

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